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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समणाण सावयाण य, देसिय पमुहाण जाण पंचण्हं । पडिक्कमणाणं किरिया, सरिसा सुत्ताणुसारेण ॥२०७॥ इरियं पडिक्कमित्ता, पडिलेहित्ताण धम्म उवगरणं । पुत्तीदेहप्पमुहं, पुणो वि इरियापडिक्कमणं ॥ २०८ ॥ सम्मं जयणा करणे, तत्तो दाऊण दोखमासमणे । भयवं सामाइयवयं, संदिस्सावेमि ठावेमि ॥ २०९॥ नवकार - भणण-पुव्वं, सामाइय-दंडगं समुच्चरइ । आवस्सय किरियाए, वेलं जाणित्तु संपत्तं ॥ २१०॥ किरियंतराल काले, पडिक्कमंताण नत्थि उववसिणं । तत्तो आसणणुण्णा, एत्थण मेयंतु निर(वे)क्खं ॥२११ ॥ कालम्मि किज्जमाणो, सज्झाउ जिणमयम्मि सुविसुद्धो। सज्झायस्स अणुण्णा, नत्थि अकाले जिणंदाणं ॥ २१२ ।। आसण सज्झायाणं, पच्छा किरियाइ संभवो अत्थि। जइ गीयत्था भावं, एवं मण्णंति ता सव्वं(च्चं) ॥ २१३॥ हुज्जा सुत्तविरुद्धं, ता मिच्छादुक्कडं हवउ । मज्झं एएण कारणेणं, दुवालसावत्त-वंदणयं ॥ २१४॥ दच्चा पच्चक्खाणं, किच्चा तो चेइयाइ वंदित्ता । आयरियाइ साहू, ठाविय पकुणंति उस्सग्गं ॥ २१५ ॥ सेसं साहु-सरित्थं, एमेव य राइयम्मि नायव्वं । वयमुच्चरित्तु पच्छा, राईपच्छित्त-उस्सग्गं ॥ २१६ ॥ काऊणं चिय-वंदण-पुव्वं ठावंति तो पडिक्कमणं । एवं देसिय-राइय, - पडिक्कमणं सावयाणं च ॥ २१७॥ अण्णं च पुत्ति-पडिलेहणाए, दुवालसावत्त-वंदणम्मि दुगं । वारदुगं च सीसो,-वरियं कायं पमज्जिज्जा ।। २१८ ॥ ૧૧૯ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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