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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १४७॥ ॥ १४८ ॥ ॥ १४९ ॥ ॥ १५० ॥ ॥ १५१॥ ||१५२ ॥ इइ उट्ठित्ता इरियं, पडिक्कमित्ता करेति उस्सग्गं । निसिपच्छित्तविसोहण, कुसुमिणउहडावणट्ठाए ऊसाससयपमाणं, अडअहियं कारणं मुणेऊणं । सक्कत्थवं भणित्ता, गिण्णइ वेरत्तियं कालं पट्ठविऊण विहिणा, सज्झायं ता कुणंति सज्झायं । संवेगसमावण्णो, असंजया जह न जग्गंति अवसेसनिसिमुहूत्ते, गिण्णइ पाभाइयं मुणी कालं । तित्थोभवंदणेहिं, आयरियाईय वंदित्ता ठावंति पडिक्कमणं, चउत्थएणं च वंदणेणं ति । राईए जह भणियं, सुत्तनिज्जुत्तिवित्तीसु आवस्सयचुण्णीए, पुव्वायरियेहिं विहियगंथेसु । केवलिवयणाणुगयं, जह भणियं तह य वक्खामि जारिसो पडिक्कमणविही इत्तियमित्तेसु गंथेसु । भणिओ तारिसो चेव आवस्सयजिट्ठवित्तीए देवसिए पडिक्कमणे, आयरणाए वि नस्थि उस्सग्गो। सुयखित्त देवयाए, सुत्ते वित्तीइचुण्णीए पक्खिय चाउम्मासिय, संवच्छरिए वि देविवुस्सगो। एगेसि चिय भणिओ, विहिवाया न उण सव्वेसिं आयरणाइ कयाए, अकयाइ न आणभंगओ दोसो। आयरणं अण्णुण्णं, करंति केई नहु करंति नियनिय गच्छायरणा, सव्वेसि भिण्णभिण्णभावेण । तह वि करंता पिहु पिहु, निदिज्जंती न केणावि केइ तिण्णि थुईउ, केइ चत्तारि देवयाणं तु । उस्सग्गम्मि भणंति य, सावि हु सव्वेसि न पमाणं ॥ १५३ ॥ || १५४॥ ॥ १५५ ॥ ॥ १५६ ॥ ।। १५७ ॥ ॥१५८ ॥ ૧૧૪ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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