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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ २९॥ ॥३०॥ ॥ ३१ ॥ ॥ ३२ ॥ ॥ ३३ ॥ ॥ ३४ ॥ हा दुट्ठकयं एयं, निर्दिता अप्पणो अणायारं । मिच्छाकारो य भवे, भणंति जं दुक्कडं मिच्छा सज्झायम्मि निउत्ता, वेयावच्चम्मि तहय अण्णम्मि । कज्जे गुरूहि सीसा, तह त्ति एवं पवझं त्ति ट्ठणब्भुट्ठाणं, अंजलिकरणं च अभिमुहं गमणं । रयहरणेणं सद्धि, पायाण पमज्झणं विहिणा कंबलि दंडग्गहणं, आसणरयणं च विणयकम्मं च । नवमा सामायारी, गुरूपूआ नामओ भणिया गच्छंतरम्भि गंतु, नाणट्ठायरियपायमूलम्मि । एवतियं कालमहं, चिट्ठिस्सं अंतिए तुम्हं इय भणिऊणं चिट्ठइ, एसा उवसंपया समायारी । दसहा जिणिंदभणिया, सद्दहियव्वा पयत्तेणं एयं सामायारि, विहिणा गच्छम्मि जो पवत्तेइ । सो आयरियो सुगुरू, सयं तरइ तारए अण्णं जोउ प्पमाय दोसेणं, आलस्सेणं भएण य । सीसवग्गं न चोएइ, तेण आणा विराहिया अह दिवसरयणिचरियं, साहूणं जिणसुयाणुसारेणं । वुच्छामि गुरूवएसा, जहा सुयं पुष्व आयरियं सवियासे कमलवणे, पसरिय सूरप्पहा पभावेणं । विद्धत्थे तिमिर भरे, तारगणे नट्ठ तेयम्मि दीसंति जत्थ सुहुमा, कररेहा उसहाय समयम्मि। तम्मि खमासमण दुगं, दाउं पडिलेहणं कुज्झा संदिस्सावेमि तहा करेम्मि, इय भणिय पुत्तियं विहिणा। पडिलेहणाउ वीसं, पण अहियातीइ कायव्वा ॥ ३५ ॥ ।। ३६ ॥ ।। ३७ ॥ ।। ३८ ॥ || ३९॥ ।। ४० ॥ १०४ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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