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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org थुइ मंगल वंदण वायणाउ, आवस्सय त्ति मण्णेह । दुहं ठेवणायरणं, तइयस्स कहं तु पडिसेहो ठविउण उत्तरिज्झं, सनाममुद्दं तहेव समणस्स | जिणवीरस्स समीवे, पडिवज्झिय धम्मपण्णति विहरइ एगग्गमणो, नाणं कुंडकोलिओ एवं । सत्तमअंगे दिस्सर, किरिया गुरु ठवण अहिनाणं जइ नणु न होइ ठवणा, ता कीस सुरेण धम्मविग्घकए । सा चैव झत्ति गहिया, वीरयबलनिरहिलासेण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विहिए निपिट्ठपसिणे, तत्थेव ठवित्तुं तं गओ अमरो । एएणं संभवेणं, जिणगुरुठवणा पमाणं मे पू. आ. श्रीपार्श्वचन्द्रसूरि विरचितम् ॥ सप्तपदी शास्त्रम् ॥ वीरजिणं नमिऊणं, अमरिंदन रिंदपणयपयजुयलं । साहूण सामायारिं, सुयाणुसारेण वच्छामि गच्छट्टिई संभोगा-संभोगविहिं मुणीण दिणचरियं । पंचपडिक्कमणविहि, उदयतिहीए सरूवं च सड्ढाणुवहाणविहिं, उवएसविहिं सुयाणुसारेण । सुगुरूण वयणवयणं, सोऊणमहं पवक्खामि गणहरइक्कारसगं, गणनवगं आसि वीरनाहस्स | सत्तण्हं च गणाणं, सत्तगणी वायणं दिति ૧૦૧ For Private And Personal Use Only ॥ ४८ ॥ ॥ ४९ ॥ ॥ ५२ ॥ वेद मुणि तिहि सुवरिसे, (१५७४) पंडियसिरिसाहुरयणसीसेण । पासचंदेण विहिया, ठवणा पंचासिया एसा ॥ ५३ ॥ ।। ५० ।। 1148 11 ॥ १ ॥ ॥ २ ॥ ॥ ३ ॥ 11 8 11
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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