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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दुविहं च देव - दव्वं, भोगुवभोगेहिं तत्थ दु-विहं पि । उचिएण वट्टिअव्वं, अण्णहा- भत्ति-भंगो य भक्खेइ जो, उविक्खेइ, जिण - दव्वं तु सावओ । पण्णा - हीणो भवे जो य, लिप्पइ पाव- कम्मुणा चेइय- दव्वं साहारणं च जो दूहइ मोहिय-मइओ । धम्मं च सो न याणइ, अहवा, बद्धा ऽऽउओ नरए ---- For Private And Personal Use Only ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ आयाणं जो भंजइ, पडिवण्ण-धणं ण देइ देवस्स । गरहंतं चोविक्खड़, सो वि हु परिभमइ संसारे इय- दव्व-विणासे, तद्-दव्व-विणासणे, दुविह भेए । साहू उविक्खमाणो अणं ऽत संसारिओ होइ रागा - ऽऽइ-दोस - दुट्ठो, जिणेहिं भणिओ विणासगो दुविहो । देवा - ऽऽइ - दव्व - पणगे, स पक्ख-पर- पक्ख भेएणं चोएइ चेइयाणं, खित्त-हिरण्णे अ गाम - गोवा - ऽऽइ । लग्गतस्स य जइणो, ति-गरण-सोही कहं णु भवे ? भण्णइ इत्थ विभासा, जो एआई सयं वि मग्गिज्जा । तस्स ण होइ विसोही, अह, कोइ हरिज्ज एआई तत्थ करेइ उवेहं जा, भणिया उति-गरण-विसोही । सायण होइ, अ- भत्ती तस्स, तम्हा - णिवारिज्जा एवं जाऊण, जे दव्व - वुड्डि णिति सुसावया । ताणं रिद्धी पवड्डे, कित्ती, सुक्खं, बलं, तहा पुत्ताय हुंति भत्ता, सोंडीरा, बुद्धि-संजुआ । सव्व - लक्खण- संपूण्णा, सु-सीला, जण-संमया जिण - पवयण - वुड्डि-करं, पभावगं णाण-दंसण- गुणाणं । वन्तो जिण - दव्वं तित्थ - यरतं लहइ जीवो ॥ १५ ॥ ॥ १६ ॥ ॥ १७ ॥ ॥ १८ ॥ ॥ १९ ॥ ॥ २० ॥ ॥ २१ ॥ ॥ २२ ॥ ॥ २३ ॥
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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