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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अह जाणित्तु परिण्णं, परस्स जिणपडिमहीलणासण्णं । तव्वावत्तिकएहं, किंपि परूवेमि नेहेण ॥ १२ ॥ अंगाणि उवंगाणि य, महापुव्वनिसीहवज्झिया छेया। नंदिअणुओगदारा, इयाय गंथा पमाणं भे ॥ १३ ॥ एए य जइ पमाणं, एसि कत्ता तुमाण सम्मविऊ। जइ सम्मविऊ तो भे, पमाणमम्हाण वि तउत्तं ॥ १४॥ जं नाए सुय जिणहर, भणणं तं तह विऊण जुत्तयरं । जइ जुत्तयरं तो जिण,-पडिमाइ जिणाण तुल्लत्तं ॥ १५ ॥ भणियाउ अंगुवंगे, छत्ताइणं धराण पडिमाओ। जाओ य जिणं भत्ती, पंजलिउड-सेवमाणीओ ॥ १६ ॥ देवच्छंदि त्ति तहा, धूवं दाऊण जिणवराणं च। जिणउस्सेह त्ति पयं, किमजुत्तं तं व जुत्तयरं ॥ १७॥ जइ जुत्तं ता मण्णे, जिणपडिमा जिणवराण तुल्लतं । अहयंच सुत्त कारय, चित्ता-भिप्पाय भणिएण जिणपडिमाणं विरहे, जिणाण सड्ढीण वितनावेण । जाणव असरिसभावं, जस्सुवएसेण तं कहह ॥ १९ ॥ सक्कत्थवाइ भणणं, अण्णेसिं चेइयाण नहु अस्थि । अरिहंतचेइयाणं, जिणव्व थुइ मंगलं तुलं ॥ २०॥ जं तो तिहिं जिणाणं, हियसुहनिस्सेहसाणुगामित्तं । जाणिज्जइ भासिज्झइ, तहेव तच्चेइयाणं पि ॥ २१ ॥ इड्ढी सुरलोयम्मि य, जिणपडिमाणं जिणेहिं जा भणिया। सा चेव जिणवराणं, चेइयरूखा हि नाणाइ ॥ २२॥ उप्पण्णकेवलाणं, कीरइ देवेहिं सत्तिभत्तीहि । चेइयजिणाण एवं, जिणभत्ताणं समो रागो ॥ २३ ॥ ॥ १८ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020963
Book TitleShastra Sandeshmala Part 22
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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