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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जहि लिंगिय जिणमंदिर जिणदविण कयई दि वसंत आसायण करहिं महंतियइ । तं पकप्पि परिवण्णिउ साहम्मियथलिय जहिं गय वंदणकज्जिण न सुदंसण मिलिय ओहनिजुत्तावस्सयपयरणदंसियउ तमणाययणु जु दावइ दुक्खपसंसियउ । तहि कारण वि न जुत्तर सावयजणगमणु तर्हि वसंत जे लिंगिय ताहि वि पयनमणु जाइज्जइ तर्हि वावि (ठाणि) ति नमियहिं इत्थु जइ गय नतजण पावहि गुणगणवुडि जइ । इहि तत्थु ति नमंतिर्हि पाउ जु पावियइ गमणु नमणु तर्हि निच्छइ सगुणिहि वारिय वसहिहिं वसहि बहुत्तउसुत्तपयंपिरइ कहि किरिय जणरंजण निच्चु वि दुक्करय । परि सम्मत्तविहीण ति हीणिहि सेवियह तिहि सहं दंसणु सग्गुण कुणर्हि न पावियहि उस्सग्गिण विहिचेइउ पढमु पयासियउ निस्साकडु अववाइण दुइउ निदंसियउ । जहि किर लिंगिय निवसहि तमिह अणाययणु तहि निसिद्ध सिद्धति वि धम्मियजणगमणु विणु कारण तहि गमणुन कुणहि जि सुविहियई तिविहु जु चेइउ कहइ सुसाहु वि मंनियइ । तं पुण दुविहु कहेइ जु सो अवगण्णियइ तेण लोउ इह सयलु वि भोलउ धुंधियइ 366 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ॥ ३४ ॥ 11 34 11 ॥ ३६ ॥ ॥ ३७ ॥ ॥ ३८ ॥ ॥ ३९ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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