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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||१०॥ ॥ १२॥ परिहरि लोयपवाहु पयट्टिउ विहिविसउ पारतंति सहु जेण निहोडि कुमग्गसउ। दंसिउ जेण दुसंघ-सुसंघह अंतरउ वद्धमाणजिणतित्थह कियउ निरंतरउ जे उस्सुत्तु पयंपहि दूरि ति परिहरइ जो उ सुनाण-सुदंसण-किरिय वि आयरइ । गड्डरिगामपवाहपवित्ति वि संवरिय जिण गीयत्थायरियइ सव्वइ संभरिय चेईहरि अणुचियई जि गीयइं वाइयइ तह पिच्छण-थुइ-थुत्तई खिड्डइ कोउयइ । विरहंकिण किर तित्थु ति सव्वि निवारियइ तेहि काहिं आसायण तेण न कारियइ लोयपवाहपयट्टिहि कोऊहलपिइहि कीरन्तइ फुडदोसइ संसयविरहियहि । ताई वि समइनिसिद्धइ समइकयत्थियहि धम्मत्थीहि वि कीरहिं बहुजणपत्थियहि जुगपवरागमु मण्णिउ सिरिहरिभद्दपहु पडिहयकुमयसमूहु पयासियमुत्तिपहु। जुगपहाणसिद्धतिण सिरिजिणवल्लहिण पयडिउ पयडपयाविण विहिपहु दुलहिण विहिचेईहरु कारिउ कहिउ तमाययणु तमिह अणिस्साचेइउ कयनिव्वुझ्नयणु । विहि पुण तत्थ निवेइय सिवपावणपउण जं निसुणेविणु रंजिय जिणपवयणनिउण ॥ १३ ॥ ॥ १५ ॥ 364 For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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