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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जं दुक्कडं ति मिच्छा, तं चेव निसेवइ पुणो पावं । पच्चक्खमुसावाई, मायानिअडीपसंगो अ मिति मिउ मद्दवत्ते, छ'त्ति दोसाण छायणे होई । मित्ति य मेराइ ठिओ, दु'त्ति दुगंछामि अप्पाणं कत्ति कडं मे पावं, ड'त्ति य डेवेमि तं उवसमेणं । एसो मिच्छादुक्कड पयक्खरत्थो समासेणं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 338 For Private And Personal Use Only ॥ ११० ॥ ॥ १११ ॥ नामं ठवणातित्थं, दव्वं तित्थं च भावतित्थं च । इक्किकं पि य इत्तो, णेगविहं होइ नायव्वं दाहोवसमं तण्हाइ, छेयणं मलप्पवाहणं चेव । तिहिं अत्थेहिं निउत्तं, तम्हा तं दव्वओ तित्थं कोहम्म उ निग्गहिए, दाहस्सुवसमणं हवइ तित्थं । लोहम्मि उ निग्गहिए, तण्हाए छेयणं होई अटुविहं कम्मरयं, बहुभवेहि उ संचियं जम्हा । तवसंजमेण धोवइ, तम्हा तं भावओ तित्थं दंसणनाणचरिते, सुनिउत्तं जिणवरेहिं सव्वेहि । एएण होइ तित्थं, एसो अण्णो विपज्जाओ सव्वो पुव्वकयाणं, कम्माणं पावए फलविवागं । अवराहेसु गुणेसु अ, निमित्तमित्तं परो होइ धारिज्जइ इंतो जल - निही वि कल्लोलभिण्णकुलसेलो । नहु अण्णजम्मनिम्मिय, सुहासुहो कम्मपरिणामो अकयं को परिभुंजइ, सकयं नासिज्ज कस्स किर कम्मं ? | सकयमणुभुंजमाणो, कीस जणो दुम्मणो होई! पोसेइ सुह भावे, असुहाई खवेइ नत्थि संदेहो । छिंदइ नरयतिरियगइ, पोसहविहिअप्पमत्तो य ॥ ११२ ॥ ॥ ११३ ॥ ॥ ११४ ॥ ॥ ११५ ॥ ॥ ११६ ॥ ॥ ११७ ॥ ॥ ११८ ॥ ॥ ११९ ॥ ॥ १२० ॥ ॥ १२१ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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