SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 340
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥७७॥ ॥ ७८ ॥ हयं नाणं कियाहीणं, हया अण्णाणओ किया। पासंतो पंगुलो दड्डो, धावमाणो अ अंधओ ।। ७५ ।। संजोगसिद्धीइ फलं वयंति, न हु (?णो) एगचक्केण रहो पयाई । अंधो य पंगू य वणे समिच्चा, ते संप (गट्ठा)उत्ता नगरं पविट्ठा ॥ ७६ ॥ सुबहु पि सुअमहीअं, किं काही चरणविप्पहीणस्स? । अंधस्स जह पलित्ता, दीवसयसहस्सकोडीओ अप्पं पि सुअमहीअं, पयासगं होई चरणजुत्तस्स । इक्कोवि जह पईवो, सचक्खुस्स पयासेई दसण वय सामाइय, पोसह पडिमा अबंभ सच्चित्ते। आरंभ पेस उद्दिट्ठ-वज्जए समणभूए अ ॥ ७९ ॥ संपत्तदंसणाई, पईदियह जइजणाओ निसुणेई । सामायारिं परमं, जो खलु तं सावगं बिति जहा खरो चंदणभारवाही, भारस्स भागी न हु चंदणस्स । एवं खु नाणी चरणेण हीणो, भारस्स भागी न हु सुग्गईए ॥८१ ॥ तहिं पंचिंदिआ जीवा, इत्थीजोणीनिवासिणो। मणुआणं नवलक्खा, सव्वे पासई केवली ॥ ८२॥ इत्थीणं जोणीसु, हवंति बेइंदिया य जे जीवा । इक्को य दुण्णि तिण्णिवि, लक्खपुहुत्तं तु उक्कोसं ॥ ८३॥ पुरिसेण सहगयाए, तेसिं जीवाण होइ उद्दवणं । वेणुअदिटुंतेणं, तत्ताइ(य)सिलागनाएणं ॥८४ ॥ इत्थीण जोणिमझे, गब्भगयाइं हवंति जे जीवा। उप्पज्जंति चयंति य, समुच्छिमा असंखया भणिया ॥८५ ॥ ||८० ॥ 339 For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy