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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org संपण्णवरविवेयं, जं गिहगय जंबु नाम वयणाओ । पालिय पवज्जंतं, पभवायरियं सया वंदे कटुमहो परमेयं तत्तं न मुणिज्ज इत्तिसो । जा सेज्जंभवं रुवउ विरत्तचित्तं नम॑सामि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संजणिय पणय रुद्द, जसभद्दं मुणिगणाहिवं सगुणं । संभूयं सुह संभूई, भायणं सूरिमणुसरिमो जिणसमयसिंधुणो, पारगामिणो वरविवेय - नावाए । सिरिभद्दबाहु गुरुणो, हियए नामक्खरे धरिमो सो कहणु थूलभद्दो, लहइ सलाहं मुणीण मज्झम्मि । लीलाइ जेण हणिउं, सरहेण य मयण - मायाउ काम-पईवसिहाए, कोसाए बहुसिणेहभरियाए । घणदढजणपयगाई, जीए जो सामिओ नेया सोवि अपुव्व-पयंगेणं जयहरे सप्पहं पयासंती | पsिहणिय पहा विहिया, मोहमहातिमिरहरणेण तस पच्छिमं चउद्दस - पुव्वीणं चरणनाणसरिसरणं । सिरिथूलभद्द समणं, वंदेहं मत्तगयगमणं विहिया अणिगृहिय - विरिय सत्तिमा सत्तमेण संतुलणा । जे अज्ज महागिरिणा समइक्कंते वि जिणकप्पे तस्स गणिट्टं लट्ठे, अज्जसुहत्थि जणपणयं । अवहत्थिय संसारं सारं सूरिं च अणुसरिमो अज्ज समुदं गंभीरिमाए वंदे समुद-गंभीरं । तह अज्जमंगुसूरिं, अज्ज सुधम्मं च धम्मरयं मण-वण- कायगो गुरु भद्दगुत्तं च गणनाहं । छम्मासिउविसजूव भावओ गहिय पव्वज्जो ૨૪૦ For Private And Personal Use Only ॥ ११ ॥ ॥ १२ ॥ ॥ १३ ॥ ॥ १४ ॥ ॥ १५ ॥ ॥ १६ ॥ ॥ १७ ॥ ॥ १८ ॥ ॥ १९ ॥ || 20 || ॥ २१ ॥ ॥ २२ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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