SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org एगट्टाणम्मि ट्ठिओ अहिसेयं कुणइ सव्व तित्थेसु । जो इंदिए निरुंभइ अहिंसउ सच्चवाई य वास सहस्संपि जले उब्बुड्डुं निब्बुड्डुणं जइ करेइ । जीव वहओ न सुज्झइ सव्वेणवि सायर जलेण मच्छाय कच्छपा चिय गाहा मयराय सुंसमाराय । हिंडिज्ज विमाण गया जइ उदयं सुग्गई नेइ जल मज्जणेण अंगं फुट्टं हुट्ठाय आयमंतस्स । नय कोइ गुणो पत्तो सीएण व मारिओ अप्पा जइ मट्टियाए सग्गो उदएणं मीलियाई संतीए । मण्णामि कुंभकार सपुत्त दारा गया सग्गं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इथुण देवयाओ लोए हिंडइय सव्व तित्थाई । जीवेसु वि नत्थ दया सव्वं पि निरत्थयं तस्स तप्पर य उद्धबाहु होऊ सेवाल- मूल-फल-भक्खी । कंट पह सयणं वा करेठ पंचग्गि तावं वा चरउ य वयाइं नाणा विहारं हिँडउय सव्व तित्थाइं । वेसं च कुणउ किंची सीलेण विणा न से किंचि मोणं वा आसेव आसम - वासं अरण्ण- वासं वा । हिययं जस्स न सुद्धं सव्वमसुद्धं परिकिलेसं उज्जइय चीवराई जई हिंडइ नग्ग वेस भावेणं । जीवेसु य नत्थि दया सव्वंपि निरत्थयं तस्स तव नियम दिक्खियाणं पंचिदिय अग्गिहुत्त ठवियाणं । जीवदय जणियाणं दिण्णंपि महाफलं तेसिं सच्चं च जस्स कुंडं तवो य अग्गी मणं च समिहाओ । इंदिय गामा य पसू सयायणे दिक्खिओ होइ ૨૨૬ For Private And Personal Use Only ॥ ६० ॥ ॥ ६१ ॥ ॥ ६२ ॥ ॥ ६३ ॥ ॥ ६४ ॥ ॥ ६५ ॥ ॥ ६६ ॥ ॥ ६७ ॥ ॥ ६८ ॥ ।। ६९ ।। ॥ ७० ॥ 1108 11
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy