________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बाहत्तरि कला कुसला पंडिय पुरिसा अपंडिया चेव । सव्व कलाणं पवरं जे धम्म कलं न याणंति
॥ २४ ॥ संजम कला तव कला विण्णाणकला विणिच्छिय कला य । जस्सेसा नत्थि कला सो विकलो जीव लोगम्मि ॥ २५ ॥ पढइ नडो वेग्गं निविज्जिज्जा बहुओ जणो जेण । पढिऊण तं तह सढो जालेण जालं समोयरइ
॥ २६॥ एवं नड पंडिच्चं भट्ठचरितं न सुग्गइं नेइ । लोयं च पण्णवेई गईय से पाविया होई
॥ २७॥ तिण्णिसया तेसट्ठा पासंडीणं परुप्पर विरुद्धा । नय दूसंति अहिंसंतं गिण्हह जत्थ सा सयला ॥ २८ ॥ जह उडुवइम्मि उइए सयल समत्थम्मि पुण्णिमा होइ । तह धम्मो वि दयाए होइ समत्थो समत्ताए
॥ २९ ॥ जो गिण्हइ कायमणी वेरुलियमणि त्ति नाम काऊण । सो पच्छा परितप्पइ जाणग जणो विउसंतो न जलं न जडा न मुंडणं नेव य वक्कल चीवराणि वा। नरस्स पावाइं विसोहयंति जहा दया थावर जंगमेसु ॥३१॥ न धम्मो आसमे वसइ न धम्मो आसमे वसंतस्स । हियए आसमो तस्स जस्स निक्कलुसा मई
॥ ३२ ॥ किमदंतस्स रण्णेण दंतस्स वि किमासमे। जत्थ तत्थ च सदंतो तं रणं सो य आसमो
॥ ३३॥ वणे वसउ दुस्सीलो गामे वसउ सीलवं । जत्थ सीलं तहिं धम्मो गामेसु नगरेसु वा
॥३४॥ जिणो कोहं च माणं च माया लोभं च निज्जिणे । अभयं देहि जीवाणं गंगाए विय पुक्खरं
॥ ३५ ॥
॥ ३० ॥
૨૨૩
For Private And Personal Use Only