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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ १५ ॥ ॥ १६ ॥ ॥ १७ ॥ ॥ १८ ॥ ॥१९॥ ॥२०॥ निव्वाणपयं पहुणो, छहिं उववासेहिं रिसहनाहस्स। मासेण उ सेसाणं, वीरजिणिदस्स छटेणं अंबिल वीसा वीसा, चउवीस वि जिणाण दवदंती । एगुत्तखुड्डिक्का - सणेहि पुण वड्डमाणे य भद्दिएगाइपणंता, महभद्दिसगंतिगाइं भद्दुत्तरे। पंचाइनवंता मह-भद्दुत्तरि पणाइगारंता अणुपंति मज्झंक, आई काउं कमेण सेसियरे। पण सत्त पंच सत्त य, लयाउ ठाविज्ज तवचउगे हवइ गुणरयण संव-च्छरम्मि एगेग दिवसओ पढमे । जो सोलदिणेहितो, पारणयं सोलसममासे अंबिलदुगे वि इग दुति, अट्ठ ? तिगा य गंठियजुगे वि । एगाइ सोलसंता, उभओ चउवीस तिगपयगे कणगावलि तह रयणा-वली वि किंतु दुग गंठिपयगेसु । मुत्तावली इगंतर, इगाइ सोलंत उभओ वि पंतिजुयले वि पढमं, इक्केक्को तो दुगाइ सोलंता । तं मज्झे एगंतर, एगाई चउदसंतओ वि पणरस दुण्ह वि मज्झ-म्मि सीहनिक्कीलिए तवे गरुए। लहुयम्मि पुण तवंता, पंतीओ अट्ठ गोमज्झे एगाई एगोत्तर-वुड्डीए जाव अंबिलाण सयं । वुड्डितरे चउत्थं, आयंबिलवद्धमाणम्मि दंसणवयसामाइय-पोसहपडिमाअबंभसच्चित्ते । आरंभपेसउद्दिट्ठ - वज्जए समणभूए य सुयभणियाइ इमाइं, जा तव चरणाइ कुणइ भावेणं । खविऊण कम्मरासिं, सिवसिरितिलओ स होइ गुरू ॥२१॥ ॥ २२ ॥ ॥ २३ ॥ ।। २४ ॥ ॥ २५ ॥ ॥ २६ ॥ ૧૪૧ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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