SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 147
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir .................................................... ॥ २० ॥ माणिक मुत्ति अ मरगय, वइरं च..... करयले बद्धं । अवहरिऊण न सक्का, गंठीए फलं सुसुद्धाए ॥१६॥ जो पोरिसिं च पुरिसो, पच्चक्खइ सव्वकालमज्झत्थो । ॥ १७ ॥ अरिहंत-चक्कवट्टी-बलदेवाणं च वासुदेवाणं । एएसि पि कुलेसुं, उप्पज्जइ सो सयं पुण्णो ॥ १८॥ पुरिमड्ढं पच्चक्खइ, रूवसिणी महिलिआ व पुरिसो वा।। सो अवरम्मि भवम्मि अ, देवत्तणमुत्तमं लहइ ॥ १९ ॥ तत्तो वि चुओ संतो, उवज्जइ घाइकम्मकम्माई। मणुअभवम्मि अ पामइ, रयणनिहिं बहुविहं पुरिसो एगट्ठाणम्मि ठिओ, बहुविहरयणाण सामिओ होइ । देवत्तणम्मि इंदो, मणुअभवे होइ महयारी ॥ २१ ॥ अपरमिअं सो पावइ, सारीरबलं मणुअलोगम्मि। एगासणगस्स फलं, जिणवरवीरेण निद्दिटुं || २२ ॥ तेएण अहिअतेऊ, न वि सक्को जोअणं व्व जोएउं । उत्तत्तकणयवण्णो, आयंबिल कारओ पुरिसो ॥ २३ ॥ जो उववासं पुरिसो, अवसं कारेइ जिणवरमएणं । बप्पुत्तिबुद्धिधुणिअं, सो निहणइ पुराणयं कम्म ॥ २४ ॥ अट्टविहं पि अ गंठी, बारसभेएण तवविहाणेणं । छिज्जइ निखिलं जम्हा, तम्हा उवावासमिच्छंत्ति ॥ २५ ॥ ૧૩૮ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy