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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ९ ॥ ॥ १४ ॥ जत्थ वसन्ति मढाइसु चियदव्वनिओगनिम्मिएसु च । साहम्मिणो त्ति लिंगेण सा थली इय पकप्पुत्तं तमणाययणं फुडमविहिचेइयं तत्थ गमणपडिसेहो । आवस्सयाइ सुत्ते विहिओ सुसाहु सड्डाणं ॥ १०॥ जो उस्सुत्तं भासइ सद्धहइ करेइ कारवे अण्णं । अणुमण्णइ कीरंतं मनसा वायाए काएणं ॥ ११ ॥ मिच्छट्ठिी नियमा सो सुविहियसाहुसावएहि पि। परिहरणिज्जो जइंसणे वि तस्सेह पच्छित्तं ॥ १२ ॥ जावज्जीवं चउवीसं उद्दिट्टट्ठम्मि, चउद्दसीसुं च, पुंनिमवीयएगारसि, पंचमि दोकासणाइ तवं ॥ १३ ॥ पंचुंबरिचउविगई हिमविसकरगे य सव्वमट्टी य । राईभोयणगं चिय वहुबीयअणंतसंधाण घोलवडा वाइंगण अमुणियनामाणि पुष्फफलियाई । तुच्छफलं चलियरसं वज्जह वज्जाण बावीसं ॥ १५॥ संगरहलिमुग्गमुहट्टमासकंडूपमुक्खबियलाई । सह गोरसेण न जिमेए य राइत्तियं न करे ।। १६॥ जम्मि य पिलिज्जंते, मणयं पि न नेहनिग्गमो हुज्जा । दुण्णियदलाई दीसंति मित्थिगाईण जह लोए ॥ १७ ॥ निसि पहाणं वज्जेमि, अच्छाणिएणंबुणा दहाईसु । अंदोलणं च वज्जे, जियाण जुज्झावणाई य ॥ १८ ॥ न वहेमि पाणिणो न य, भणामि भासं मुसं न य मुसामि। परदव्वं परजुवई नामियमिह परिग्गहं पि करे ॥ १९ ॥ वज्जइ इह तेनाहड तकरजोगं विरुद्धरज्जं च । कूडतुलकूडमाणं तप्पडिरूवं च ववहारं ॥ २० ॥ ૧૩૫ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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