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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जह आहारो जायइ मणसा किरिया देवमणुयाणं । सम्मत्तचरणधम्माण परोप्परं एस दिट्टंतो Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आवस्सयाइ मुत्तुं केई कुव्वंति निच्चलं झाणं । ते जिणमयवरलोयणरहिया मग्गंति सिवमग्गं सयलपमायविमुक्का जे मुणिणो सत्तमाइठाणेसु । तेसि हवेइ निच्चलझाणं इयराण पडिसेहो धम्मज्झाणं चउव्विहभेयं पकुणंतु भावओ भविया । आवस्सयाइजुत्तं जह सुलहो होइ सिवमग्गो विहिअविहिसंसएणं केई गिण्हित्तु किं पि न (नो?) वायं । किरियं नो भवभीरु कुणंति तेसिं पि अण्णाणं जइ नत्थि च्चिय गुरुणो ता तेण विणा कहं वहइ तित्थं । अहिं बहुएहिं तुंबे विणा जहा चक्कं अह दव्वखेत्तकालं वियारिऊणं गुरूसु अणुरायं । कुज्जा चइत्तु माणं सुधम्मकुसला जहा होह नियगच्छे परगच्छे जे संविग्गा बहुस्सुया साहू | तेसिं अणुरागमई मा मंचसु मच्छरेण हओ संविग्गमच्छरेणं मिच्छद्दिट्ठी मुणी विनायव्वो । मिच्छत्तम्मिन चरणं तत्तो य विडंबणा दिक्खा वेसं पाणयंता केई मण्णंति साहुणो सव्वे । ई सव्वनिसेहं तत्थ य दुण्हं पि मूढमई जह नाइल - सुमईहिं सुहगुरु-कुगुरूण मण्णणं विहियं । ना(ता?) अज्ज वि भेयदुगं गिण्हसु सुद्धं परिक्खित्ता साहूहिं विणा धम्मो वुच्छिण्णो आसि दुसमसुसमाए । सहि समत्थेहि विन रक्खिओ अज्ज का वत्ता ? १२३ For Private And Personal Use Only ॥ ५६ ॥ ॥ ५८ ॥ ॥ ५९ ॥ ॥ ६० ॥ ॥ ६१ ॥ ॥ ६२ ॥ ॥ ६३ ॥ ॥ ६४ ॥ ॥ ६५ ॥ ॥ ६६ ॥ ॥ ६७ ॥ ॥ ६८ ॥
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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