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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥२४॥ ॥ २५ ॥ ॥ २६ ॥ ॥ २७ ॥ ॥ २८ ॥ ॥ २९ ॥ जह देहपालणट्ठा जुत्ताहारो विराहगो ण मुणी। तह जुत्तवत्थपत्तो विराहगो णेव णिद्दिट्टो अणसणसहावजोगा जह असणं अणसणन्ति जुत्तमिणं । जुत्तं तह वत्थाई सहावओऽतप्परिणयस्स एवं च सचेलाणं, कह सुत्तुत्तं भवे अचेलतं ? इय पभणंतस्स तुहं, को णियघररक्खणोवाओ जइ चेलभोगमेत्ता ण जियाचेलक्क परीसहो साहू। भुंजन्तो अजियखुहापरीसहो तो तुमं पत्तो जह जलमवगाहन्तो भण्णइ चेलरहिओ सचेलो वि। तह थोवजुण्णकुत्थियचेला वि अचेलया साहू उवयारेण अचेला सेसमुणी सव्वहा जिणिन्दा य । खंधाओ देवसं चवइ तओ चेव आरब्भ एएण जइ अचेला जिणिन्दजिणकप्पिआइआ सुमुणी । तो एसो च्चिय मग्गो णण्णो त्ति पराकयं वयणं जिणकयमेव य कम्मं जइ कायव्वं तओ तुहं इहयं । उवएससिस्सदिक्खागुरुवयणाईहि किं कज्जं निरतिसयाणं कप्पो, थेराण हिओ ठिओ अ तत्थेव। पडिवज्जउ जिणकप्पं, पंचहिं तुलणाहिं जुत्तो जो वेज्जुवदिटुं ओसहमिव जिणकहिअंहिअंतओ मग्गं । सेवंतो होइ सुही इहरा विवरीअफलभागी अणिगूहन्तो सत्ति, भुंजन्तो वि जह णो चयइ मग्गं । अणिगूहन्तो सत्तिं, तह उवगरणं धरन्तो वि कारणिगं जह वत्थं तह आहारो वि दंसिओ समए । एग चिच्चा अवरं गिण्हताणं णु को भावो ॥३०॥ ॥ ३१ ॥ ॥ ३२॥ ॥ ३३॥ || ३४॥ ॥ ३५ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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