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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ ४॥ न्यायविशारदमहामहोपा.श्रीयशोविजयकृता ॥ अध्यात्ममतपरीक्षा ॥ पणमिय पासजिर्णिदं वंदिय सिरिविजयदेवसूरिन्दं । अज्झप्पमयपरिक्खं जहबोहमिमं करिस्सामि ॥१॥ अज्झप्पं णामाई चउव्विहं चउव्विहा य तव्वन्ता । तत्थ इमे अत्थुज्झिय णामेणज्झप्पिआ णेया ।। २॥ जा खलु सहावसिद्धा किरिआ अप्पाणमेव अहिगिच्च । भण्णइ परमज्झप्पं सा दंसण - णाण - चरणड्डा ण विणा रागद्दोसे अज्झप्पस्सेह किंचि पडिकृलं । परदव्वं उवगरणं किं पुण देहुव्व धम्मटुं उवधिसहिओ ण सुज्झइ सतुसा जह तन्दुला ण सुज्झन्ति। इय वयणं पक्खित्तं दूरे दिटुंतवेसम्मा जा उवगरणे मुच्छा आरम्भो वा असंजमो तस्स । तह परदव्वम्मि रई सा किण्ण तुहं सरीरेऽवि तह परदव्वम्मि रई परिणामो रक्खणाणुबन्धो वा । दुहओ तणुसममुवहिं पासन्तो किं ण लज्जेसि जो किर जयणापुव्वो वावारो सो ण झाणपडिवक्खो। सो चेव होइ झाणं जुगवं मणवयणकायाणं झाणं करणपयत्तो ण सहावो तण्ण जेण सिद्धस्स । इहरा ठाणविभागो कह सुक्कज्झाणभेआणं ॥ ९॥ जा खलु सरागचरिया सा वि य उस्सग्गमग्गसंलग्गा । मोत्तुं अववायपदं अइप्पसंगी परविसेसो ॥१०॥ नणु बझंगं साहणमववाओ अन्तरंगमुस्सग्गो । जा पुण सरागचरिया समुच्चिआ णेव सुद्धाए ॥ ११ ॥ ॥ ७ ॥ ॥ ८ ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020962
Book TitleShastra Sandeshmala Part 21
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayrakshitvijay
PublisherShastra Sandesh Mala
Publication Year2009
Total Pages442
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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