SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ . " पप्रनन्दि-पञ्चविंशतिः प्रकट किया है। उपलब्ध प्रमाणोंपरसे इनका रचनाकाल विक्रमकी ११वीं शती सिद्ध होता है । इन्होंने अपना नाम 'वरपउमणंदि' प्रकट किया है। प्राकृत पद्यात्मक 'धम्मरसायण' के कर्ताने भी अपना नाम 'वरपउमणंदिमुणि' प्रकट किया है। इसके अतिरिक्त उक्त दोनों रचनाओंमें कुछ सादृश्य भी है (घ. र. ११८-१२० और जं. प. १३, ८४-८७ ध. र. १२२-२७ व १३४-१३६ और जं. प. १३, ९०-९२)। अत एव आश्चर्य नहीं जो जं. दी. प. और ध. र. के कर्ता एक ही हो । एक वे भी पद्मनन्दी हैं, जिनकी पंचसंग्रहवृत्ति हालमें ही भारतीय ज्ञानपीठ, काशीसे प्रकाशित हुई है। भावना-पद्धति नामक ३४ पद्योंकी एक स्तुति तथा जीरापल्ली पार्श्वनाथस्तोत्रके कर्ता पद्मनन्दी पट्टावलीके अनुसार दिल्ली (अजमेर ) की भट्टारक गद्दीपर प्रभाचन्द्र के पश्चात् आरूढ हुए और वि. सं. १३८५ से १४५० तक रहे। वे जन्मसे ब्राह्मण वंश के थे। उनके शिष्य दिल्ली-जयपुर, ईडर और सूरतकी भट्टारक गद्दियोंपर आरूढ हुए। इन ग्रंथकारोंके अतिरिक्त कुछ पद्मनन्दी नामधारी आचार्यों के उल्लेख प्राचीन शिलालेखों व ताम्रपटों आदिमें प्राप्त हुए हैं जो निम्न प्रकार हैं १. वि. सं. ११६२ में एक पद्मनन्दि सिद्धान्तदेव व सिद्धान्त-चक्रवर्ती मूलसंघ, कुन्दकुन्दान्वय, क्राणूर गण व तिंत्रिणीक गच्छमें हुए । (एपी. कर्ना. ७, सोरव नं. २६२) २. गोल्लाचार्यके प्रशिष्य व त्रैकाल्ययोगीके शिष्य कौमारदेव व्रतीका दूसरा नाम आविद्धकर्ण पद्मनन्दि सैद्धान्तिक था। वे मूलसंघ, देशीगणके आचार्य थे जिनका उल्लेख वि. सं. १२२० के एक लेखमें पाया जाता है, उनके एक सहधर्मी प्रभाचन्द्र थे तथा उनके शिष्य कुलभूषणके शिष्य माघनन्दीका संबंध कोल्हापुरसे था। (एपी. कर्ना. २, नं. ६४ (४०). संभवतः ये वे ही हैं जिन्हें एक मान्य लेखमें मन्त्रवादी कहा गया है (एपी. कर्ना २, नं. ६६ (४२). ३. एक पद्मनन्दी वे हैं जो नयकीर्तिके शिष्य व प्रभाचन्द्रके सहधर्मी थे और जिनका उल्लेख वि. सं. १२३८, १२४२, और १२६३ के लेखोंमें मिलता है। इनकी भी उपाधि 'मंत्रवादिवर' पाई जाती है। संभवतः ये उपर्युक्त नं. २ के पद्मनन्दीसे अभिन्न हैं । (एपी. कर्ना. ३२७ (१२४); ३३३ (१२८) और ३३५ (१३०). ४. एक पद्मनन्दी वीरनन्दीके प्रशिष्य तथा रामनन्दीके शिष्य थे जिनका उल्लेख १२वीं शतीके एक लेखमें मिलता है। (एपी. कर्ना. ८, सोराव नं. १४०, २३३ व शिकारपुर १९७; देसाई, जैनिजिम इन साउथ इंडिया, पृ. २८० आदि) ____५. अध्यात्मी शुभचन्द्रदेवका स्वर्गवास वि. सं. १३७० में हुआ था और उनके जिन दो शिष्योंने उनकी स्मृतिमें लेख लिखवाया था उनमें एक पद्मनन्दी पंडित थे । (एपी. कर्ना. ६५ (४१) व भूमिका पृ. ८६). ६. वाहुबली मलधारिदेवके शिष्य पद्मनन्दि भट्टारकदेवका उल्लेख वि. सं. १३६० के एक लेखमें आया है । उन्होंने उस वर्षमें एक जैन मन्दिरका निर्माण करवाया था । (एपी. कर्ना. हुन्सुर १४ ). ७. मूलसंघ, कोण्डकुन्दान्वय, देशीगण, पुस्तक गच्छवर्ती त्रैविद्यदेवके शिष्य पद्मनन्दिदेवका स्वर्गवास वि. सं. १३७३ (! १४३३) हुआ था । (एपी. कर्ना. श्र. वे. २६९ (११४ ).
SR No.020961
Book TitlePadmanandi Panchvinshti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Siddhantshastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year2001
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy