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________________ २८४ पमनन्दि-पञ्चविंशतिः ९. शिखरिणी (वृ. र. ३-१२३)-२०, ३६, १५, ४९, १०२, १०३, १५, १२२-२३, ३.११.. इसके प्रत्येक चरणमें यगण, मगण, नगण, सगण, भगण और फिर क्रमसे , वर्ण लघु व १ वर्ग दीर्घ होता है। १०. द्रुतविलम्बित (पृ. र. ३-६२)-११६, ९३१-३९%310. इसके प्रत्येक चरणमें नगण, भगण, भगण और रगण होते हैं। ११. पृथ्वी (वृ. र.३-१२४)-१८, ५६, ९९, १४४, १५, २७३, ८७९, ८८२-८. इसके प्रत्येक चरणमें जगण, सगण, जगण, सगण, यगण भौर क्रमसे १ वर्ण लघु और १ गुरु होता है। यति ८ व ९ वर्णोपर होती है। १२. मन्दाक्रान्ता (वृ. र. ३-१२७)–२२, १००, १३, १७२, १७८, ३८६६. ___ इसके प्रत्येक चरणमें मगण, भगग, नगण, वगण, तगण और अन्तमें २ दीर्घ वर्ण होते हैं। यति ४, ६ मौर • वर्णोपर होती है। १३. उपेन्द्रवज्रा (कृ. र. ३-४२)-५८, २९०, ३४३, १५९४. इसके प्रत्येक चरणमें जगण, वगण, जगण और मम्समें २ वर्ण गुरु होते हैं। १४. इन्द्रवज्रा (वृ. र. ३-४१)-५५, १२६-२७-३. इसके प्रत्येक चरणमें वगण, फिर तगण, जगण और अन्तमें २ वर्ष गुरु होते है। १५. भुजंगप्रयात (वृ..३-७०).-४८11. इसके प्रत्येक चरणमें ४ यगण होते हैं।
SR No.020961
Book TitlePadmanandi Panchvinshti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Siddhantshastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year2001
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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