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________________ प्रस्तावना ४. 'ब' प्रति- इस प्रतिमें ग्रन्थका मूल भाग मात्र है, संस्कृत टीका नहीं है । यह ऐ. पन्नालाल सरस्वती भवन बम्बईसे प्राप्त हुई थी जो यहां बहुत थोड़े समय रह सकी है। उसका उपयोग पाठभेदोंमें कचित् ही किया जा सका है। ५. 'च' प्रति- यह प्रति संघके ही पुस्तकालयकी है । इसमें मूल श्लोकोंके साथ हिन्दी (ढूंढारी) वचनिका है । संस्कृत टीका इसमें नहीं है । इसकी लंबाई-चौडाई १३४७ है । पत्र संख्या १-२७९ है। इसके प्रत्येक पत्रमें एक ओर १२ पंक्तियां और प्रतिपंक्तिमें ४०-४४ अक्षर हैं । लिपि सुन्दर व सुवाच्य है। इसका प्रारम्भ इस प्रकार है-॥६०॥ ॐ नमः सिद्धेभ्यः ॥ अथ पंद्मनंदिपंचविंशतिका ग्रन्थकी मूल श्लोकनिका अर्थसहित वचनिका लिखिये है ॥ अन्तमें- ॥ इति श्री पद्मनंदिमुनिराजविरचितपद्मनंदिपंचविंशतिका वचनिका समाप्तः । इस वाक्यको लिखकर प्रतिके लेखनकालका उल्लेख इस प्रकार किया गया है- मिति भादौ वदि ॥ ३ ॥ बुधवासरे ॥ संवत् ॥ १९ ॥ २९ ॥ मुकाम चंद्रापुरीमध्ये ॥ सुभं भवतु मंगलं ददातु । श्री ॥ श्री ।। श्री॥ वचनिकाके अन्तमें २५ चौपाई छन्दोमें उसके लिखने आदिका परिचय इस प्रकार कराया गया है-ढूंढाहर देशमें जयपुर नगर है । उसमें रामसिंह राजा प्रजाका पालन करता था। वहां सांगानेर बजारमें खिन्दूकाका मन्दिर है । वहां साधर्मी जन आकर धर्मचरचा किया करते थे । पद्मनन्दिपञ्चविंशतिके अर्थको सुनकर उनके मनमें सर्वसाधारणके हितकी दृष्टि से वचनिकाका भाव उदित हुआ । इसके लिये उन सबने ज्ञानचन्दके पुत्र जौहरीलालसे कहा । तदनुसार उन्होंने उसे मूल वाक्योंको सुधार कर लिखा और वचनिका लिखना प्रारम्भ कर दी । किन्तु 'सिद्धस्तुति' तक वचनिका लिखनेके पश्चात् उनका देहावसान हो गया । तब पंचोंके आग्रहसे उसे हरिचन्दके पुत्र मन्नालालने पूरा किया। इस प्रकार वचनिका लिखनेका निमित्त बतलाकर आगे उसके पच्चीस अधिकारोंका चौपाई छन्दोंमें ही निर्देश किया गया है। यह देश वचनिका १९१५वें सालमें मृगशिर कृष्णा ५ गुरुवारको पूर्ण हुई। इसमें प्रथमतः मूल श्लोकको लिखकर उसका शब्दार्थ लिखा गया है, और तत्पश्चात् भावार्थ लिखा गया है । भावार्थमें कई स्थानोंपर ग्रन्थान्तरोंके श्लोक व गाथाओं आदिको भी उद्धृत किया गया है। मुद्रित प्रतियां-१. प्रस्तुत ग्रन्थका एक संस्करण श्री. गांधी महालचन्द कस्तूरचन्दजी धाराशिवके द्वारा शक सं. १८२० में प्रकाशित किया गया था । इसमें मूल श्लोकके बाद उसका मराठी पद्यानुवाद, फिर संक्षिप्त मराठी अर्थ और तत्पश्चात् संक्षिप्त हिन्दी (हिन्दुस्थानी) अर्थ भी दिया गया है । हिन्दी अर्थ प्रायः मराठी अर्थका शब्दशः अनुवाद प्रतीत होता है । अर्थमें मात्र भावपर ही दृष्टि रखी गई है। २. दूसरा संस्करण श्री. पं. गजाधरलालजी न्यायशास्त्रीकी हिन्दी टीकाके साथ भारती भवन' बनारससे सन् १९१४ में प्रकाशित हुआ है। यह हिन्दी टीका प्रायः पूर्वोक्त (५ 'च' प्रति ) हिन्दी वचनिकाका अनुकरण करती है। इन दो संस्करणोंके अतिरिक्त अन्य भी संस्करण प्रकाशित हुए हैं या नहीं, यह हमें ज्ञात नहीं है ।
SR No.020961
Book TitlePadmanandi Panchvinshti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Siddhantshastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh
Publication Year2001
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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