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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९४ कुप (क्रोधे, दिवादिगण, परस्मै, लुङ्) अकोपिष्यताम् अकोपिष्यतम् अकोपिष्याव कल्प कल्पसे कल्पे अकोपिष्यत् अकोपिष्यः अकोपिष्यम् कृपू (सामर्थ्ये, भ्वादिगण, आत्मने, लट्) कल्पे कल्पे कल्पाव कृपू (सामर्थ्ये, भ्वादिगण, आत्मने, लोट्) कल्पेताम् कल्पेथाम कल्पाव कल्पताम् कल्पस्व कल्पै www.kobatirth.org अकल्पत अकल्पथाः अकल्पे कृपू (सामर्थ्ये, भ्वादिगण, आत्मने, लङ्) अकल्पेताम अकल्पेथाम अकल्पावहि संगणक - जनित व्यावहारिक संस्कृत धातु-रूपावली चकूपे चकूपिषे चकूपे कृपू (सामर्थ्ये, भ्वादिगण, आत्मने, विधिलिङ्) कल्पेत कल्पेताम् कल्पेथाः कल्पेय कल्पेथाम् कल्पेव कृपू (सामर्थ्ये, भ्वादिगण, आत्मने, लिट्) कल्पिता कल्पितासे कल्पिता चकूपा चकूपा चकुपव कृपू (सामर्थ्ये, भ्वादिगण, आत्मने, लुट् ) कल्पितारौ कल्पितासा कल्पितास्वहे Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only - अकोपिष्यन् अकोपिष्यत अकोपिष्याम कल्पन्ते कल्पवे कल्पामहे कल्पन्ताम् कल्पध्वम् कल्पाम अकल्पन्त अकल्पध्वम अकल्पामहि कल्पेरन् कल्पेध्वम् कल्पे चकपिरे चकपिध्वे चकूपिमहे कल्पितारः कल्पिताध्वे कल्पितास्महे
SR No.020942
Book TitleVyavaharik Sanskrit Dhatu Rupavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirishnath Jha, Sudhirkumar Mishra, Ganganath Jha
PublisherVidyanidhi Prakashan
Publication Year2007
Total Pages815
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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