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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् दशम उद्देशकः १५०४ (A) www.kobatirth.org दूरस्थितैरपि एलुक उत्क्षेप-निक्षेपौ च दृश्येते, मण्डपे वा यत्र परिवेषणम्, रसवत्यां वा महानसे अगम्भीरे अतिप्रकाशे, तत्रापि निष्क्रमण-प्रवेशौ वर्जयित्वा यत्र उत्क्षेप-निक्षेपौ न दृश्येते एलुकविष्कम्भमात्रे क्षेत्रे एकपार्श्वे स्थित्वा भिक्षामादत्ते । एष एलुकसूत्रस्य विषयः ॥ ३८५९ ॥ सूत्रम् - पंचविहे ववहारे पण्णत्ते, तं जहा ४. धारणा, ५. जीए । - १. आगमे Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir - For Private And Personal २. सुए, ३. आणा, १. जहा से तत्थ आगमे सिया, आगमेणं ववहारं पट्ठवेज्जा । सूत्र ३ २. णो से तत्थ आगमे सिया, जहा से तत्थ सुए सिया, सुएणं ववहारं पट्टवेज्जा । ३. णो से तत्थ सुए सिया, जहा से तत्थ आणा सिया, आणाए ववहारं पट्टवेज्जा । ४. णो से तत्थ आणा सिया, जहा से तत्थ धारणा सिया, धारणाए ववहारं ३८६० - ३८६३ गाथा पञ्चव्यवहाराः पट्टवेज्जा | ५. णो से तत्थ धारणा सिया, जहा य से तत्थ जीए सिया, जीएणं ववहारं पट्टवेज्जा । १५०४ (A)
SR No.020939
Book TitleVyavahar Sutram Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size13 MB
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