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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहारसूत्रम् नवम उद्देशकः १४७६ (B) एवमेव अनेनैव प्रकारेण महत्यपि मोकप्रतिमा द्रष्टव्या। नवरं सा अष्टादशकेन निष्ठां याति परिहारतपोऽष्टौ दिवसान्। न च स रोगी भवति प्रतिमाप्रभावात्। यदि वा बलिन | एषा प्रतिमा भवति, नेतरस्य ॥ ३७८७ ।। पडिवत्ती पुण तासिं, चरमनिदाघे व पढमसरए वा। संघयण-धितिजुत्तो, फासयती दो वि एयातो ॥ ३७८८॥ प्रतिपत्तिः पुनरेतयोः प्रतिमयोश्चरमनिदाघे वा प्रथमशरदि वा । एते च द्वे अपि प्रतिमे | स्पर्शयति आद्यसंहननत्रयान्यतमसंहननयुक्तो धृत्या च वज्रकुड्यसमानः ॥ ३७८८॥ सूत्रम्-संखादत्तियस्स भिक्खुस्स पडिग्गहधारिस्स गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए | अणुपविट्ठस्स जावइयं-जावइयं केइ अंतो पडिग्गहंसि उवइत्ता दलएज्जा तावइयाओ ताओ || दत्तिओ वत्तव्वं सिया। तत्थ से केइ छब्बएण वा, दूसएण वा, वालएणं वा अंतो पडिग्गहंसि उवइत्ता ||१४७६ (B) दलएज्जा, सव्वा वि णं सा एगा दत्ती वत्तव्वं सिया । | सूत्र ४३-४४ गाथा ३७८५-३७८९ दत्तिस्वरूपादिः For Private and Personal Use Only
SR No.020938
Book TitleVyavahar Sutram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages315
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size10 MB
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