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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् नवम उद्देशकः www.kobatirth.org आईयव्वे, अससणिद्धे मत्ते आगच्छइ आईयव्वे । ससरक्खे मत्ते आगच्छइ नो आईयव्वे, अससरक्खे मत्ते आगच्छइ आईयव्वे । जावइए जावइए मोए आगच्छइ तावइए तावइए सव्वे आईयव्वे, तं जहा- अप्पे वा, बहुए वा। एवं खलु एसा खुड्डिया मोयपडिमा अहासुतं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ ॥ ४१ ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हल्लियं णं मोयपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पड़ पढमनिदाह कालसमयंसि वा, १४७० (B) * चरमनिदाहकालसमयंसि वा, बहिया गामस्स वा जाव रायहाणीए वा वसि वा वणदुग्गंसि वा पव्वयंसि वा पव्वयदुग्गंसि वा, भोच्चा आरुभइ, सोलसमेणं पारेइ, अभोच्चा आरुभइ, अट्ठारसमेणं पारेइ । जाए जाए मोए आगच्छइ, ताए ताए आईयव्वे । दिया आगच्छइ आईयव्वे, रत्तिं आगच्छइ नो आईयव्वे, जाव एवं खलु एसा महल्लिया मोयपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालित्ता भवइ ॥ ४२ ॥ " दो पडिमातो " इत्यादि सूत्रद्वयम् । अस्य सम्बन्धमाहपडिमाहिगारपगते, हवंति मोयपडिमा इमा दोन्नि । ता पुण गणम्मि वुत्ता, इमा उ बाहिं पुरादीणं ॥ ३७६८ ॥ For Private and Personal Use Only सूत्र ४१-४२ गाथा ३७६८-३७६९ मोकप्रतिमा स्वरूपम् १४७० (B)
SR No.020938
Book TitleVyavahar Sutram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages315
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size10 MB
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