SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 30
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir व्याख्यातः पञ्चम उद्देशकः । सम्प्रति षष्ठो व्याख्येयः । श्री व्यवहार तस्येदमादिसूत्रम्सूत्रम् सूत्रम्- भिक्खू य इच्छेज्जा नायविहिं एत्तए, नो से कप्पइ से थेरे अणापुच्छित्ता षष्ठ उद्देशकः नायविहिं एत्तए । कप्पड़ से थेरे आपुच्छित्ता नायविहिं एत्तए । थेरा य से वियरेज्जा, २०४७ ( BR एवं से कप्पड़ नायविहिं एत्तए । थेरा य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पड नायविहिं एत्तए। जे तत्थ थेरेहिं अविइण्णो नायविहिं एइ, से संतरा छेए वा परिहारे वा। नो से a कप्पइ अप्पसुयस्स अप्पागमस्स एगाणियस्स नायविहिं एत्तए । कप्पड़ से जे तत्थ बहुस्सुए बब्भागमे तेण सद्धिं नायविहिं एत्तए । तत्थ [णं ] से पुव्वागमणेणं पुव्वाउत्ते चाउलोदणे पच्छाउत्ते भिलिंगसूवे, कप्पइ से चाउलोदणे पडिगाहेत्तए, नो से कप्पइ भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए । तत्थ से पुव्वागमणेणं . पुव्वाउत्ते भिलिंगसूवे, पच्छाउत्ते चाउलोदणे, कप्पइ से भिलिंगसूवे पडिगाहित्तए, नो X. . सूत्र १ गाथा २४२७-२४३१ ज्ञातविधि गमनसामाचारी ४१०४७ (B) १. नायविहं- श्युबींग। एवमग्रेऽपि ।। २. जं -श्युबींग ॥ For Private And Personal Use Only
SR No.020937
Book TitleVyavahar Sutram Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages606
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy