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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४ श्री व्यवहार सूत्रम् तृतीय उद्देशकः ७६६ (B) माई, मुसावाई, असुई, पावजीवी, जावज्जीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥२८॥ ___ बहवे भिक्खुणो, बहवे गणावच्छेइया, बहवे आयरिय-उवज्झाया बहुस्सुया बब्भागमा बहुसो बहु आगाढागाढेसु कारणेसु माई, मुसावाई, असुई, पावजीवी, जावजीवाए तेसिं तप्पत्तियं नो कप्पड आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा | उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा ॥२९॥ सूत्रसप्तकम्, "भिक्खू य बहुस्सुते' इत्यादि सूत्रसप्तकम्। अथास्य सूत्रस्य पूर्वसूत्रैः सह सम्बन्धमाह वयअतियारे पगते, अयमवि अन्नो उ तस्स अइयारो। इत्तिरियमपत्तं वा, वुत्तं इदमावकहियं तु ॥ १६१७ ॥ पूर्वसूत्रेषु व्रतस्य मैथुनविरत्यादेरतिचारः प्रकृतोऽधिकृतः, अयमपि चाऽन्यस्तस्य | व्रतस्यातिचार इति, तत्प्रतिपादनार्थमिदं सूत्रसप्तकम् अथवा पूर्वसूत्रेषु त्रीणि संवत्सराणि यावदाचार्यत्वादीनि न कल्पन्त इति वचनादित्वरमपात्रमुक्तम्, इदं पुन: सूत्रसप्तकेनाभिधीय सूत्र २३-२९ गाथा |१६१७-१६१९ बहुशो व्रतातिचारे पदाऽयोग्यत्वम् ७६६ (B) For Private and Personal Use Only
SR No.020935
Book TitleVyavahar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages582
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size17 MB
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