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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra श्री व्यवहार सूत्रम् तृतीय उद्देशक: ७०८ (B) ܀܀܀܀܀܀ ܀܀܀܀܀܀܀܀ www.kobatirth.org सच्चेव णं से तिवासपरियाए समणे निग्गंथे नो आयारकुसले जाव नो उवग्गहकुसले खंयायारे, भिन्नायारे, सबलायारे, संकिलिट्ठायारे, अप्पसुए अप्पागमे नो कप्पइ उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥४॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे [ आयारकुसले जाव असंकिलिट्ठायारे ] जहन्नेणं दसकप्पववहारधरे कप्पड़ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दित्तिए ॥ ५ ॥ सच्चेव णं से पंचवासपरियाए समणे निग्गंथे [ णो आयारकुसले जाव संकिलिट्ठायारे णो जहन्नेणं दसाकप्पववहारधरे ] नो कप्पड़ आयरियउवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए ॥ ६ ॥ अट्ठवासपरियाए समणे निग्गंथे [ आयारकुसले जाव असंकिलिट्ठायारे ] जहन्नेणं ठाण समवायधरे कप्पइ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइत्ताए उद्दिसित्तए ॥ ७ ॥ सच्चेव णं से आचार्योअट्ठवासपरियाए, समणे निग्गंथे [ णो आयारकुसले जाव संकिलिट्ठायारे णो जहन्त्रेणं ठाण - समवायधरे ] नो कप्पड़ आयरियत्ताए जाव गणावच्छेइयत्ताए उद्दिसित्तए ॥८ ॥ सूत्र ३-८ गाथा १४५८ - १४४९ पाध्याययोग्यायोग्यत्वम् १ सुया प्रतिलि° २. 'ट्ठायारचित्ते - श्युब्रींग ॥ ३ दसा' आगमप्र ॥ For Private and Personal Use Only ७०८ (B)
SR No.020935
Book TitleVyavahar Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMunichandrasuri
PublisherOmkarsuri Gyanmandir Surat
Publication Year2010
Total Pages582
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size17 MB
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