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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठवणा वीसिय पक्खिय पंचिय एगाडिया उ बोधव्वा ॥ पारोवणावि पक्खिय पंचिय तह पंच एगा ही ॥१७३ ।। स्थापनायाः प्रथम स्थाने जघन्ये स्थापमा विशिका विंशतिरात्रिंदिवसप्रमाखा द्वितीये पाक्षिकी तृतीये पंचिका पंचदिवसात्मिका चतुर्थे च एकाहिका एकाइमात्रा प्रारोपणापि प्रथमस्थाने जघन्या पाक्षिकी द्वितीये पंचिका पंचदिनप्रमाणा तृतीयेपि पंचिका चतुर्थे एकाहिका सर्वजघन्यान्येतानि स्थापनारोपणास्थानानि ॥ आह च चूर्णिकृत् ॥ एयाणि सव्वजहनगाणि ठवणा रोवणा ठाणाणि इति; इह न ज्ञायते, कसिन् जघन्ये स्थापनास्थाने किं जघन्यस्थापनास्थानं भवति, तत् | परिज्ञानार्थमिदमाह ॥ वीसाए अद्धमासं पक्खे पंचाहमारोहिज्जा हि ॥ पंचाहे पंचाहं एगाहे चेव एगाहं ॥ १७४ ॥ विशिकायां विंशिकारूपे जघन्ये स्थापनास्थाने जघन्यमारोपणास्थानमर्धमासमारोहयेत् , खबुद्धावारोपयेत् , जानीया- 1 दित्यर्थः ॥ तथा पचे पचप्रमाणे जघन्ये स्थापनास्थाने पंचाहं पंचाहप्रमाणं जघन्यमारोपणास्थानं, तथा पंचाहे पंचाहप्रमाणे जघन्येस्थापनास्थाने पंचाहप्रमाणमेव जघन्यमारोपणास्थानमेकाहे एकदिनप्रमाणे जघन्ये स्थापनास्थाने जधन्यमारोपणास्थानमेकाहमेव, एकदिनप्रमायमेव; संप्रति प्रथमेस्थापनास्थाने या जघन्या स्थापना, या च उत्कृष्टा तां प्रतिपादयति; For Private and Personal Use Only
SR No.020933
Book TitleVyavahar Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManekmuni
PublisherJain Shwetambar Sangh
Publication Year1926
Total Pages330
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_vyavahara
File Size15 MB
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