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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रति लनी) एक जीव बंधक छे, 2 एक जीव अबंधक छ, 3 अनेक जीवो बंधक छे, 4 अनेक जीवो अबंधक है, 5 अथवा एक बंधक अने एक अबंधक छे, 6 अथवा एक बंधक अने अनेक अबंधक छे,७ अथवा अनेक बंधक अने एक अबंधक छ, 8 अथवा अनेक|* व्याख्याबंधक अने अनेक प्रबंधक छे. ए प्रमाणे ए आठ मांगा जाणवा. *११शतके तेणं भंते ! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं वेदगा अवेदगा?, गोयमा! नो अवेदगा, वेदए वा वेदगा उद्देशा // 928 वा एवं जाच अंतराइयस्म, ते णं भंते! जीवा किं सायावेयगा असायावेयगा, गोयमा! सायावेदए वा असाया-४॥९२८॥ लवेयए वा अट्ट भंगा 6 ते णभंते! जीवा णाणावरणिजस्म कम्मस्स किं उदई अणुदई, गोयमा! नो अणुदई, माउदई वा उदहणो वा, एवं जाब अंतराइयस्स७॥ तेणं भंते! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं उदीरगा?, II गोयमा! नो अणुदीरगा, उदीरए वा उदीरगा वा, पवं जाव अंतराइयस्स, नवरं वेयणिजाउएसु अट्ठ भंगा 8 / म.) हे भगवन् ! ने उत्पलना जीवो ज्ञानावरणीयकर्मना वेदक छे के अवेदक छे! [उ०) हे गौतम ! नेओ अवेदक नथी, पण एक जीव वेदक छ अथवा अनेक जीवो अवेदक छे. ए प्रमाणे यावद् अंतराय कर्म सुधी जाण. [प्र०] हे भगवन् ! ते (उत्प-11 लना) जीवो साताना वेदक छे के असाताना वेदक छ। [उ०] हे गौतम! ते जीवो साताना वेदक छे अने असाताना पण वेदक छे. अहीं पूर्व प्रमाणे आठ भांगा कहेवा. [म.] हे भगवन् ! ते (उत्पलना) जीवो ज्ञानावरणीय कर्मना उदयवाळा छे के अनुदयवाळा छे. [उ.] हे गौतम! तेओ ज्ञानावरणीयकर्मना अनुदयवाळा नथी, पण एक जीव उदयवाळो छ अथवा अनेक जीवो उदय वाला छे. ए प्रमाणे यावत् अंतरायकर्म संबंधे जाणवू. [प्र०] हे भगवन् ! शुं ते (उत्पलना) जीवो ज्ञानावरणीयकर्मना उदीरक के For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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