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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie व्याख्याप्राप्ति 1839 // यथी वधावे छे. वधावीने ते जमालिए आ प्रमाणे का-हे माता पिता! ए प्रमाणे में श्रमण भगवंत महावीर पासेथी धर्म सांभळयो / छे, ते धर्म मने इष्ट छ, अत्यन्त इष्ट छे, अने तेमां मारी अभिरुचि थइ छे. त्यारपछी ते जमालि कुमारने तेना माता पिताए आ प्रमाणे कयु-'हे पुत्र ! तुं धन्य हे, हे पुत्र! तुं कृतार्थ छे, हे पुत्र ! तुं कृतपुण्य छे अने हे पुत्र ! तुं कृतलक्षण छे के जे ते श्रमण | भगवंत महाबीरनी पासेथी धर्मने सांभळ्यो छे, अने ते धर्म तने प्रिय छे, अत्यन्त प्रिय छे अने तेमां तारी अभिरुचि थई छे.' तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मापियरो दोचपि एवं बधासी-एवं खलु मए अम्मताओ! समणस्स 11839 // भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते जाव अभिरुहए, तए णं अहं अम्मताओ! संसारभउब्बिग्गे भीए जम्मजरामरणाणं तं इच्छामि अम्मताओ! तुझेहिं अब्भणुनाए समाणे ममणस्स भगवओ महावीरस्स अतिय मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए / पछी ते जामलि क्षत्रियकुमारे बीजीवार पण पोताना माता-पिताने आ प्रमाणे कडु के-'हे माता-पिता ! ए प्रमाणे में श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्म सांभळ्यो छे, यावत् तेमां मारी अभिरुचि थइ छे. तेथी हे माता-पिता ! हुं संसारना भयथी उद्विन थयो छु, जन्म जरा अने मरणथी भय पम्यो छु, तेथी हे माता-पिता! तमारी आज्ञाधी हुँ श्रमण भगवंत महाबीरनी पासे दीक्षा | लेइने, गृहवासनो त्याग करी, अनगारिकपणाने ग्रहण करवा इच्छु छु. तए णं सा जमालिस्स खत्तियकुमारस्स माता तं अणिटुं अकंतं अप्पियं अमणुनं अमणाम असुयपुवंस *गिरं सोचा निसम्म सेयागयरोमकूवपगलतविलीणगत्ता सोगभरपवेवियं गमगी नित्तया दीणविमणवयणा For Prvate and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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