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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande व्याख्या ठा शसके उदेश 1con 870 // हवे अन्य कोई दिवसे ते जमालि अनगारने रसरहित, विरस, अन्त, प्रान्त, रुक्ष (लुखा) तुच्छ, कालातिक्रांस, (भुख तरसनो | काल बीती गया पछी) प्रमाणातिक्रांत (प्रमाणथी वधारे के ओछा) शीत पान-भोजनथी शरीरमा मोटो व्याधि पेदा थयो, ते व्याधि अत्यन्त दाह करनार, विपुल, सख्त, कर्कश, कटुक, चंड, (भयंकर) दुःखरूप, कष्टसाध्य, तीव्र अने असह्य हतो, तेनुं शरीर पित्तज्वरथी व्यप्त होवाथी ते दाहयुक्त हतो. हवे ते जमालि अनगार वेदनाथी पीडित थयेलो पोताना श्रमण निग्रेथोने बोलावे हे. बोलावीने तेथे ए प्रमाणे का के- देवानुप्रियो / तमे मारे मुवा माटे संस्तारक (शय्या) पाथरो'. त्यारबाद ते श्रमण निर्ग्रन्थो जमालि अनगारनी आ वातनो विनयपूर्वक स्वीकार करे छे, स्वीकारीने जमालि अनगारने मुवा माटे संस्तारक पाथरे छे. ज्यारे ते जमालि अनगार अत्यंत वेदनाथी व्याकुल थयो त्यारे फरीथी श्रमण निग्रंथोने बोलाव्या अने बोलावीने फरी रणे आ प्रमाणे कछु के-'हे देवानुप्रियो ! मारे माटे संस्तारक कयों छे के कराय छ ?' जए ते समणा निग्गंथा जमालिं अणगारं एवं वयासी-णो स्वलु देवाणुप्पियाण सेज्जासंधारण माकडे कज्जति तए ण तस्स जमालिस्स अणगारस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाय समुप्पज्जित्था-जन्नं संमणे भगवं महाबीरे एवं आइक्वइ जाब एवं परूवेइ-एवं खलु चलमाणे चलिए उदीरिजमाणे उदीरिए जाव निजरिजमाणे णिजिन्ने त ण मिच्छा, इमं च पञ्चश्वमेव दीमइ सेजासंथारए कजमाणे अकडे संथरिज|माणे असंथिरए, जम्हा णं सेजासंधारण कन्जमाणे अकडे संघरिजमाणे असंथरिए तम्हा चलमाणेवि अचलिए जाव 4. निजरिजमाणेवि अणिजिन्ने, एवं संपेहेइ एवं संपेहेत्ता समणे निग्गंथे सद्दावेह समणे निग्गंथे सहावेत्ता एवं ॐ For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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