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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir व्याख्याप्रज्ञप्ति // 1034 // जीवाणं किं सभावओ परिणामओ, जयंती! सभावओ, नो परिणामओ। सब्वेऽविणं भंते! भवसिद्धिया जीवा |सिज्झिस्संति?, हंता! जयंती! सब्वेविणं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति / जइ भंते! सव्वे भवसिद्धिया जीवा१शतके सिज्झिस्संति तम्हा णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सह, णी तिगट्ठ समढे, से केणं खाइएणं अटेणं भंते ! एवं बुच्चइसब्वेविणं भवसिद्धिया जीवा सिज्झिस्संति नो चेव णं भवसिद्धियविरहिए लोए भविस्सइ!, जयंती! र० से जहानामए सब्वागाससेढी सिया अणादीया अणवदेग्गा परित्ता परिवुडा सा णं परमाणुपोग्गलमत्तेहिं खंडेहिं समये 2 अवहीरमाणीर अणताहि ओसप्पिणीअवमप्पिणीहि अवहीरंति नो चेव णं अबहिया सिया, से तेणटेणं जयंती! एवं बुञ्चह सव्वेविणं भवसि द्धिया जीवा सिज्झिस्संति नो चेवणं भवसिद्धि अविरहिए लोए भविस्सइ॥ त्यार बाद ते जयंती श्रमणोपासिका श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी दृष्ट अने तुष्ट थइ, श्रमण भगबंत महावीरने चांदी, नमी आ प्रमाणे बोली के-[प्र०] हे भगवन् ! जीवो शाथी गुरुत्व-भारेपणु पामे ? [उ.] हे जयंती ! जीवो प्राणातिपातथी-जीवहिंसाथी यवद् मिथ्यादर्शनशल्यथी, ए प्रमाणे खरेखर जीवो भारेकर्मीषणुं प्राप्त करे . ए प्रमाणे जेम प्रथम शतकमां कयु छ तेम जाणवु, यावत् तेओ मोक्षे जाय छे. [प्र०] हे भगवन् ! जीवोनुं भवसिद्धिकपणु खभावथी छे के परिणामथी छे ? [उ०] हे जयंती ! भवसिद्धिक जीवो स्वभावथी छे, पण परिणामथी नथी. [प्र०) हे भगवन् ! सर्वे भवसिद्धिक जीवो सिद्ध थशे ? [उ०] हे जयंती ! हा, सर्वे भवसिद्धिक जीवो सिद्ध थशे. [प्र०] हे भगवन् ! जो सर्वे भवसिद्धिको सिद्ध थशे तो आ लोक भवसिद्धिक जीवो रहित थशे ? [उ.] ते अर्थ यथार्थ नथी, अर्थात् बधा भवसिद्धिको सिद्ध थाय तोपण भवसिद्धिक विनानो लोक *%%AKKARNAGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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