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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyarmandir क्षणं इस बाससहरण परं बोच्छिन्ना देवा या अने शंखवन नाम वैत्वा वर्णन. उद्देश 1.16 // // 1.16 // * का सई निसामेत्ता तहेव सव्वं भाणियब्वं जाव अहं पुण गोयमा! एवं आइक्खामि एवं भासामि जाव परूवेमि| देवलोएसु णं देवाणं जहन्नेणं बस बाससहस्साह ठिती पण्णत्ता, तेण पर समयाहिया दुसमयाहिया जाव उको सेणं तेत्तीस सागरोदमाई ठित्ती पनत्ता,तेण परं बोच्छिन्ना देवा य देवलोगा य।। ___त्यार बाद श्रमण भगवंत महावीर अन्य कोइ दिवसे आलमिका नगरीथी अने शंखवन नामे चैत्ययी नीकळी बहारना देशोमां | विचरे के. [प्र०] ते काले-ते समये आलमिका नामे नगरी हती. वर्णन. त्यां शंखवन नामे चैत्य हतुं. वर्णन. ते शंखवन चैत्यनी थोडे दूर पुद्गल नामे परिव्राजक रहे तो हतो. ते ऋग्वेद, यजुर्वेद अने यावत् वीजा ब्राह्मण संबन्धी नयोमा कुशल हतो. ते निरंतर छद्र छनो तप करवापूर्वक उंचा हाथ राखीने यावत् आतापना लेतो हतो. त्यार पाद ते पुद्गल परिव्राजकने निरन्तर छ? छट्ठना तप करवापूर्वक यावद् आतापना लेता प्रकृतिनी सरलताथी शिव परिव्राजकनी पेठे यावद् विभंग नामे ज्ञान उत्पन्न थयुं, अने ते उत्पन्न थयेला विमंगज्ञानवडे ब्रह्मलोककल्पमा रहेला देवोनी स्थिति जाणे छे अने जुए छे. पछी ते पुदल परिव्राजकने आवा प्रकारनो आ | संकल्प यावद् उत्पन्न भयो-'मने अतिशयवाछं ज्ञान अने दर्शन उत्पन्न थयु छे, देवलोकमां देवोनी जघन्य स्थिति दस हजार वर्षनी छे, अने पछी एक समय अधिक, वे समय अधिक, यावद् असंख्य समय अधिक करता उत्कृष्टथी दस सागरोपमनी स्थिति कही छे. त्यार पछी देवो अने देवलोको व्युच्छिन्न थाय -एम विचार करे छे, विचारीने आतापनाभूमियी नीचे उतरी त्रिदंड, इंडिका, यावद् भगवां वस्त्रोने ग्रहण करी ज्यां आलमिका नगरी छे, अने ज्यां तापसोना आश्रमो छेत्यां आवे छे, आवीने पोताना उपकरणो 4) मूकी आलमिका नगरीमां शृंगाटक, त्रिक, यावद् वीजा मागोमां एक बीजाने ए प्रमाणे कहे के, याव प्ररूपेत् छे–'हे देवानुप्रिय ! कर For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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