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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie 11 उदेशर 101 / / // 1.14 // SURES पपणत्ता, तत्थ णं इसिभइपुत्तस्सवि देवस्स चत्तारि पलिओवमाई ठिती भविस्संति।से णं भंते इसिभहपुत्ते देवे तातो देवलोगाओ आउक्खएणं भव० ठिहक्खएणं जाव कहिं उववजिहिति?, गोयमा! महाविदेहे वासे सिझिहिति जाव अंतं काहेति / सेवं भंते ! सेवं भंते !त्ति भगवं गोषमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ (सूत्रं 435) / [प्र०] 'हे भगवन् ! ए प्रमाणे कही भगवान् गौतमे श्रमण भगवंत महावीरने बांदी अने नमस्कार करी आ प्रमाणे कधु-'हे | भगवन् ! श्रमणोपासक ऋषिमद्रपुत्र आप देवानुप्रियनी पासे दीक्षा लइ गृहवासनो त्याग करी अनगारिकपणाने लेवाने समर्थ छ / [[उ.] हे गौतम! आ अर्थ यथार्थ नथी; पण हे गौतम ! श्रमणोपासक ऋषिभद्रपुत्र घणा शीलव्रत, गुणव्रत, विरमणव्रत प्रत्याख्यान | अने पौषधोपवासो वडे तथा यथायोग्य स्वीकारेल तपकर्म वडे आत्माने भावित करतो घणां वरसो सुधी श्रमणोपासकपर्यायने पाळी, मासिक संलेखनावडे आत्माने सेवी, साठ भक्तो निराहारपणे बीताबी आलोचन अने प्रतिक्रमण करी, समाधिने प्राप्त थह मरण समये काल करी सौधर्मकल्पमा अरुणाभम नामे विमानमा देवपणे उत्पन्न थशे. त्यां केटलाक देवोनी चार पल्योपमनी स्थिति कही छे; तेमां ऋषिभद्रपुत्र देवनी पण चार पल्योपमनी स्थिति हो [अ०] हे भगवन् पछी ते ऋषिभद्रपुत्र देव ते देवलोकथी आयुषनो क्षय थया पछी, भवनो क्षय थया पछी, अने स्थितिनो क्षय थया बाद यावत् क्या उत्पन्न यशे? [उ०] हे गौतम ! महाविदेह क्षेत्रमा सिद्धिपद पामशे, यावत् सर्व दुःखोनो अन्त-नाश करशे. हे भगवन् / ते एमज के, हे भगवन् ! ते एमब-एम कही भगवान् मौतम यावत् आत्माने भावित करता विहरे छे. // 435 // तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नया कयावि आलभियाओ नगरीओ संखवणाओ चेझ्याओ पडिनिक्स्व For Private and Personal use only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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