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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir प्रणाम 1009 // त्यार बाद हे सुदर्शन ! बालपणाने बीतावी विज्ञ अने मोटो थइ, यौवनने प्राप्त थइ ते तेवा प्रकारना स्थविरोनी पासे केवलिए। | कहेलो धर्म सांभळ्यो, अने ते धर्म पण तने इच्छित अने स्वीकृत थयो, तथा तेना उपर तने अभिरुचि थइ. हे सुदर्शन ! हाल तुं जे *११शतके करे छे ते सारं करे . तेमाटे हे सुदर्शन ! एम कहेवाय छे के ए पल्योपम अने सागरोपमनो क्षय अने अपचय थाय छे. त्यार बाद पापाचारपाना उद्देशा११ | श्रमण भगवंत महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी, अवधारी ते सुदर्शन शेठने शुभ अध्यवसायवडे, शुभ परिणामवडे अने विशुद्ध // 1009 // लेश्याओयी तदावरणीय कर्मोनो क्षयोपशम थवाथी ईहा, अपोह, मार्गणा अने गवेषणा करतां संज्ञिरूप पूर्व जन्मनु स्मरण उत्पन्न थयु अने तेथी भगवंते कहेला आ अर्थने सारी रीते जाणे छे. त्यार बाद ते सुदर्शन शेठने श्रमण भगवंत महावीरे पूर्वभव संभारेलो होवाथी बेवडी श्रद्धा अने संवेग उत्पन्न थयो, तेनां लोचन आनंदाश्रुथी परिपूर्ण थया, अने तेणे श्रमण भगवंत महावीरने त्रण वार आदक्षिण प्रदक्षिणा करी, वांदी अने नमीने आ प्रमाणे कयु-'हे भगवन् ! तमे जे कहो छो ते एज प्रमाणे शे-यावत् एम कही ते सुदशन शेठ उत्तरपूर्व ( ईशान ) दिशा तरफ गया. बाकी मधुं ऋषभदत्तनी पेठे जाणवु, यावत् ते सुदर्शन शेठ सर्व दुःखथी रहित थया. परन्तु विशेष ए छे के ते पूरां चौद पूर्वो भणे छे, अने संपूर्ण चार बरस मुधी श्रमणपर्यायने पाळे मे. बाकी बधुं पूर्व प्रमाणे | जाणवु हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे. हे भगवन् ! ते ए प्रमाणे छे -एम कही यावद् विहरे छे. // 432 // भगवत् सुधर्मखामीप्रणीत श्रीमद् भगवतीसूत्रना 11 मा शतकमा अगीयारमा उद्देशानो मूलार्थ संपूर्ण थयो. 4 RSS % 94% E For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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