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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandie मा | नामे नगर के, अने ज्यां सहस्राप्रवन नामे उपान छे, त्यां आवे छे, आवीने यथा योग्य अवग्रहने ग्रहण करी संयम अने तपबडे 18 आत्माने भावित करता यावद् विहरे छे, ते समये हस्तिनागपुर नगरमा श्रृंगाटक, त्रिक-[वगेरे मार्गोमां घणा माणसो परस्पर एम प्रशिकहे छे इत्यादि ] यावत् परिषद् उपासना करे छे. त्यार बाद ते महाबल कुमार घणा माणसोना शब्दने, जनना कोलाहलने सांभळी Inte. ए प्रमाणे यावत् जमालिनी पेठे जाणवू, यावत् ते महाबल कुमार कंचुकी पुरुषने बोलावे में, अने कंचुकी पुरुष पण तेज प्रमाणे | कड़े छे, परन्तु एटलो विशेष के के ते कंचुकी धर्मघोष मुनिना आममननो निश्चय जाणीने हाथ जोडीने यावद् नीकळे छे. ए प्रमाणे | हे देवानुप्रिय ! विमलनाथ अरिहंतना प्रशिष्य धर्मघोष नामे अनगार अहीं आव्या चे-इत्यादि पूर्व प्रमाणे जाणवू, यावत् ते महा| बल कुमार पण उत्तम रथमां बेसीने वांदवा नीकळे के. धर्मकथा केशिवामिनी पेठे जाणवी. महाबल कुमार पण ते प्रमाणे माता| पितानी रजा मागे छे, परन्तु ते 'धर्मघोष अनगारनी पासे दीक्षा लइ अगारथी-गृहबासथकी अनगारिकपणुं लेवाने इच्छु छु' एम | कहे -इत्यादि उक्त अने प्रत्युक्ति ते प्रमाणे ( जमालिना चरितमां वर्णव्या प्रमाणे ) जाणवी. परन्तु हे पुत्र ! [आ तारी स्त्रीओ] विपुल एवा राजकुलमा उत्पन्न थयेली चालाओ छ, वळी ते कलाओमां कुशल छे-इत्यादि वर्षा पूर्व प्रमाणे जाणवू. यावत् मातापिताए इच्छा विना ते महाबल कुमारने आ प्रमाणे कघु तं इच्छामो ते जाया! एगदिवसमवि रजसिरिं पासित्तए, ताण से महम्बले कुमारे अम्मापियराण वयणमणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिट्ठति / तए णं से बले राया कोडंबियपुरिसे सहावेह एवं जहा सिवभहस्स तहेव रायाभिसेओ भाणिययोजाव अभिसिंचति करयलपरिग्गहिय महम्बलं कुमारं जएण विजएणं वदावें ति जएणं विजएणं For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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