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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmandir ११शत उरेशन 1981 // + लाहिं कल्लाणाहिं सिवाहिं धन्नाहिं मंगल्लाहिं मस्सिरीयाहिं मियमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संलवमाणी संलबमाणी बास्या- KI पडिबोहेति पडिवोहेत्ता बलेणं रन्ना अन्भणुन्नाया ममाणी नाणामणिरयणभत्तिचित्तसि भद्दासणंसि णिसीयति |णिसीयित्ता आसस्था वीसत्था सुहासणवरगया बलं रायं ताहिं इटाहिं कंताहिं जाव संलवमाणी२ एवं बयासी#Rent मोतीना हार, रजत, क्षीरसमुद्र, चंद्रना किरण, पाणीना विंदु अने रूपाना मोटा पर्वत जेवा धोळा, विशाळ, रमणीय अने दर्शनीय, स्थिर अने सुंदर प्रकोष्ठवाळा, गोळ, पुष्ट, सुश्लिष्ट, विशिष्ट अने तीक्ष्ण दाढोबड़े फाडेला मुखवाळा, संस्कारित उत्तम कमलना जेवा कोमल, प्रमाणयुक्त अने अत्यन्त सुशोभित ओष्ठवाळा, राता कमलना पत्रनी जेम अत्यंत कोमळ ताल अने जीभवाळा, मूषामां में रहेला, अनीथी तपावेल अने आवर्त करता उत्तम सुवर्णना समान वर्णवाळी गोळ अने विजळीना जेवी निर्मळ आंखवाळा, विशाल * अने पुष्टजंघावाळा, संपूर्ण अने विपुल स्कंधवाळा, कोमल, विशद-स्पष्ट, सूक्ष्म, अने प्रशस्त, लक्षणवाळी विस्तीर्ण कसरानी छटाथी सुशोभित, उंचा करेला, सारीरीते नीचे नमावेला, मुन्दर अने पृथिवी उपर पछाडेल पूछडाथी युक्त, सौम्य, सौम्य आकरवाळा | लीला करता, बगासां खाता अने आकाश थकी उतरी पोताना मुखमा प्रवेश करता सिंहने खममा जोइ ते प्रभावती देवी जागी. त्यार बाद ते प्रभावती देवी आ आबा प्रकारना उदार यावत् शोभावाळा महास्वमने जोइने जागी अने हर्षित तथा संतुष्ट हृदयवाळी थई, यावत् मेघनी धारथी विकसित थयेला कंदचकना पुष्पनी पेठे रोमांचित थयेली (प्रभावती देवी) ते खमनु स्मरण करे छ, सरण करीने पोतना शयनथी उठी त्वराविनानी, चपलतारहित, संभ्रमविना, विलंबरहितपणे राजईससमान गतिवडे ज्यां बलराजानु शयनगृह छ त्यां आवे छे, आवीने इष्ट, कांत, प्रिय, मनोज, मनगमती, उदार, कल्याण, शिव, धन्य, मंगल्य सौन्दर्ययुक्त, मित, ला For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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