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________________ Shri Mahavir Jan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyanmande व्याख्याप्रशतिः // 973 // F - K महालयाए जाब आराहए भवह। तए ण से सुदंसणे सेट्ठी समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्म। सोचा निसम्म हट्ठतुट्ठ० उट्ठाए उढेइ २त्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो जाव नमसित्ता गवं वधासी-कई विहे||१तके णं भंते! काले पन्नत्त, सुदंसणा! चउबिहे काले पन्नत्ते, तंजहा-पमाणकाले१ अहाउनिब्बत्तिकाले२ मरणकाले | उद्देश:११ | 3 अदाकाले 4, से किं तं पमाणकाले?, 2 दुविहे पन्नत्ते, तंजहा-दिवसप्पमाणकाले 1 राइप्पमाणकाले य२,18 // 973 // चउपोरिसिए दिवसे चउपोरिसिया राई भवई उकोमिया अपंचममुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा राईए वा पोरिसी भवइ, सू० 421) ते काले, ते समये वाणिज्यग्राम नामे नगर हतुं. वर्णन. तिपलाशक चैत्य हतुं. वर्णन. यावत् पृथिवीशिलापट्ट हतो. ते वाणिज्यग्राम नगरमा सुदर्शन नामे शेठ रहेतो हतो ते आढथ-धनिक, यावत् अपरिभूत-कोइथी पराभव न पामे तेवो, जीवा जीव तस्वनो जाणनार श्रमणोपासक हतो. त्यां महावीरस्वामी समवसर्या. यावत् पर्षद्-जनसमुदाये पर्युपासना करे छे. त्यार बाद महावीर स्वामी आब्यानी आवात मांभळी सुदर्शनशेठ हर्षित अने संतुष्ट थया, अने स्नान करी, बलिकर्म यावत् मंगलरूप प्रायश्चित्त करी, सर्व अलंकारथी विभूषित थइ, पोताना घेरथी बहारनीकळे थे, बहार नीकळीने माथे धारण कराता कोरंटकपुष्पनी माळावाळा छत्र सहित पगे चालीने घणा मनुष्योना समुदायरूप वागुरा-बन्धनधी विंटायेला ते सुदर्शन शेठ वाणिज्यग्राम नगरनी बच्चोयच थईने नीकळे छे. नीकळीने ज्यां तिपलाश चैत्य छे, अने ज्यां श्रमण भगवंत महावीर ने त्यां आवे छे, आवीने श्रमण भगवंत महावीरनी पासे है। पांच प्रकारना अभिगमवढे जाय छे, ते अभिगमो आ प्रमाणे छ- 'सचित्त द्रव्योनो त्याग करचों-इत्यादि जेम ऋषभदत्तना प्रक For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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