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________________ Shri Mahaww Jain Aradhana Kendra www.kabatirth.org Acharya Shri Kalassagarsur Gyarmandie +-2% ए प्रमाणे विचार करी ज्यां तापसोनो मठ छे त्यां आवे छे. आवी तापसोना मठमा प्रवेश करी घणी लोढी, लोढाना कडाया व्याख्या-1k यावत् कावड वगेरे उपकरणोने लेइ तापसोना आश्रमथी नीकळे छे. नीकळीने विभंगवानरहित ते शिवराजर्षि हस्तिनापुर नगरनी बच्चो ११शतके प्रज्ञप्तिः | बच थईने ज्यां सहस्राम्रवन नामे उद्यान छे, ज्यां श्रमण भगवान् महावीर छे त्यां आवे छे. आवीने श्रमण भगवान महावीरने त्रण उद्देशा९ // 959 // // 959 // वार प्रदक्षिणा करीने वांदे छे अने नमे छे. वांदी अने नमीने तेजओथी बहु नजीक नहीं अने बहुदर नहीं तेम उभा रही यावत् हाथ जोडी ते शिवराजर्षि श्रमण भगवंत महावीरनी उपासना करे छ. त्यार बाद ते शिवराजपिने अने मोटामा मोटी पर्षदने श्रमण भग | बंत महावीर धर्म वीर धर्मकथा कहे छे. अने यावत् ते शिवराजर्षि आजाना आराधक थाय छे. पछी ते शिवराजर्षि श्रमण भगवान् | महावीरनी पासेथी धर्मने सांभळी अने अवधारी स्कंदकना प्रकरणमा कह्या प्रमाणे यावत् ईशान कोण तरफ जहधणी लोढी, लीढाना कडाया यावत् कावड वगेरे तापसोचित उपकरणोने एकांत जग्याए मूके छे. मूकीने पोतानी मेळे पंच मुष्टि लोच करी, श्रमण भगवंत महावीर पासे ऋषभदत्तनी पेठे प्रव्रज्यानो स्वीकार कर छे, अने ते प्रमाणे अग्यार अंगोन अध्ययन करे छ, तथा एज प्रमाणे | यावत् ते शिवराजर्षि सर्व दुःखथी मुक्त थाय छे. // 418 // भंतेत्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदह नमसह वदिता नमंसित्ता एवं बयासी-जीवाण मंते ! | सिममाणा कयरंमि संघयणे सिज्झति !, गोयमा! वयरोसभणारायसंघयणे सिझंति एवं जहेव उववाइए नहेव संघयणं मंठाणं उच्च आउयं च परिवसणा, एवं सिद्धिगंडिया निरवसेसा भाणियब्बा जाव अब्बाबाट |सोक्खं अणुहवं (हुंती) ति सामया सिद्धा / सेवं भंते!:त्ति // ( सूत्रं 419) सिवो समत्तो।। 11-9 // 444* For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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