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________________ Shri Mahawan Aradhana Kendra Acharya Shri Kalassagarsun Gyarmandir ११शव प्रवासिः CENS HORSt: यावत् प्रस्' -ए धमागे जंबूद्वीपादि द्वीपो अने लवणादि समुद्रो वधा (वृत्ताकार होबाथी) आकारे एक सरवा छे, पण विचालताए / द्विगुण द्विगुण विस्तारवाळा होवाथी अनेक प्रकारना छे-इत्यादि सर्व 'जीवाभिगम'मां कह्या प्रमाणे जाणवू, यावत् हे आयुष्मन् श्रमण! आ तिर्यग्लोकमा स्वयंभूरमण समुद्रपर्यन्त असंख्यात द्वीपो अने समुद्रो कथा . | उद्देशान ____ अस्थि णं भंते ! जंबुद्दीवे दीवे दवाई सवनाईपि अवनाईपि सगंधाइंपि अगंधाईपि सरमाइंपि अरमाइंपि // 955 // सफासाइपि अफासाईपि अनमनबद्धाई अन्नमनपुट्ठाई जाव घडताए चिट्ठति?, हंता अस्थि / अस्थि ण भंते! लवणसमुद्दे दबाई सवन्नाइंपि अवनाईपि मगंधाइंपि अगंधाइंपि सरसाईपि अरसाइंपि सफामाईपि अफासाइंपि अनमन्त्रबद्धाई अनमनपुट्ठाई जाव घडत्ताग चिट्ठति ?,हंता अस्थि / अस्थि णं भंते धायहसंडे दीवे दबाई सब-14 नाइंपि. एवं चेव एवं जाव सयंभूरमणममुद्दे ? जाब हंता अस्थि। नए णं मा महतिमहालिया महच्चपरिसा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं एयमढे सोचा निसम्म हहतुट्ठा समणं भगवं महावीरं बंदा नमसह वंदित्ता नमंसित्ता जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिस पडिगया, तएणं हथिणापुरे नगरे सिंघाडगजावपहेसु बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्वइ जाच परूवेह-जन्नं देवाणुप्पिया। मिवे रायरिसी एचमाइक्बह जाव परूवेइ-अस्थि णं देवाणुप्पिया! ममं अतिसेसे नाणे जाद समुद्दा यतं नो इणढे समढे, समणे भगवं महावीरे एवमाइक्वइ जाव परूवेह-एवं खलु एयरस सिवस्स रायरिसिस्स छटुंछट्टेणंतं चेव जाव भंडनिक्खेवं करेह भंडनिक्खेवं करेत्ता हथि. *णापुरे नगरे सिंघाडग जाव समुहा य, ता णं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स अंतियं एपमहूँ सोचा निसम्म जाव RAKESPECARS For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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