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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir * ११शक्के % व्याख्या प्रदाप्तिः // 935 // उदेश // 935 // नेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं संखेनं कालं एवतियं कालं मवेजा एवतियं कालं गतिरागति कज्जइ, एवं तेइंदि. 8 यजीवे, एवं चरिंदियजीवेवि, से णं भंते ! उप्पलजीवे पंचेदियतिरिक्वजोणियजीवे पुणरवि उप्पलजीवेत्ति पुच्छा, गोयमा ! भवादेसेणं जहन्नेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसणं अट्ठ भवग्गहणाई कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ताई उक्कोसेणं पुब्बकोडिपुत्ताइएवतियं कालं सेवेजा एवतिय कालं गतिरागति करेजा, एवं मणुस्सेणवि समं जाव एवतियं कालं गतिरागतिं करेजा 28 ते णं भंते! जीवा किमाहारमाहारेंति?, गोयमा! दवओ अणंतपएसियाई दवाई एवं जहा आहारुद्देसए वणस्सइकाइयाणं आहारो तहेव जाव सबप्पणयाए आहारमाहारेंति नवरं नियमा छपिसि सेसं तं चेव 29 / [प्र.] हे भगवन् ! ते उत्पलनो जीव बेइन्द्रियमा आवे, अने ते फरीथी उत्पलपणे उपजे ए प्रमाणे ते केटलो काळ सेवे केटलो काल गमनागमन करे ? [उ.] हे गौतम! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी चे भव, उत्कृष्टथी संख्याता भवो; तथा कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्महूर्त, अने उत्कृष्टयी संख्यातो काल; एटलो काल सेवे-एटलो काल गमनागमन करे. एज प्रमाणे त्रीन्द्रियपणे, अने चतुरिद्रियजीवपणे गमनागमन करवामा पूर्ववत् काल जाणवो. [प्र.] हे भगवन् ! उत्पलनो जीव पंचेन्द्रियतियंचयोनिकपणे उपजे अने ते फरीथी उत्पलपणे उपजे, एम केटलो काल गमनागमन करे ! [उ.] हे गौतम! भवनी अपेक्षाए जघन्यथी ये भव, उत्कृष्टयी आठ भवो, कालनी अपेक्षाए जघन्यथी वे अंतर्मुहूर्त, अने उत्कृष्टयी पूर्वकोटिपृथक्त्व एटलो काल सेवे-पटलो काल गमनागमन करे. ए प्रमाणे उत्पलनो जीव मनुष्य साथे पण यावत् एटलो काल गमनागमन करे. [प्र०] हे भगवन् ! ते उत्पलना जीवो AGAR For Private and Personal Use Only
SR No.020923
Book TitleVyakhyapragnapti Sutra Part 04
Original Sutra AuthorSudharmaswami
Author
Publisher
Publication Year
Total Pages238
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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