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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८ वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मंझूषा 'गुडः' आदि शब्दों से, गुडत्व धर्म से विशिष्ट 'गुड' पद का जो वाच्यार्थ है, उसी का बोध होता है जिसमें गुडत्व' रूप जाति का ज्ञान विशेषण बनता है। ('गुडः' कहने पर) मधुरता का ज्ञान तो, “गन्ने के रस से बने होने के कारण गुड़ मीठा है (जो वस्तु गन्ने के रस से बनी होगी वह मीठी होगी)" इस 'अनुमान'-रूप दूसरे प्रमाण से बोध्य है । शब्द से प्रकट होने वाले ज्ञान अथवा बोध को 'शाब्दबोध' कहा जाता है। शाब्दबोध में उच्चार्यमाण सार्थक शब्द कारण है तथा उससे अभिव्य ज्यमान अर्थ कार्य है। परन्तु इस 'कार्य-कारणभाव' को नैयायिकों की पारिभाषिक शब्दावली में परिष्कृत करके उपर नागेश ने प्रस्तुत किया है। कार्य-कारण भाव की इस परिभाषा में यह बताया गया है कि किसी शब्द के प्रयोग के बाद श्रोता को उससे जो अर्थ की प्रतीति होती है उसमें दो अवान्तर कारण होते हैं । एक तो श्रोता को उस शब्द का ज्ञान हो, (अर्थात् उच्चरित शब्द का उसे स्पष्ट श्रवण हो जाय) तथा दूसरा उस शब्द की, घट पट आदि विषयक, वृत्ति का भी श्रोता को ज्ञान हो । उसे यह पता हो कि वक्ता ने इस शब्द का प्रयोग उस घट या पट विषयक 'वृत्ति' को ध्यान में रख कर किया है, अर्थात् इस शब्द के अभिधेय, लक्ष्य तथा व्यंग्य अर्थों में कौन सा अर्थ प्रगट करना वक्ता को अभीष्ट है इसका श्रोता को स्पष्ट बोध हो। 'वृत्ति'-शब्द जिस व्यापार द्वारा अपने अर्थ का बोध कराता है उसे यहाँ 'वृत्ति' कहा गया है। यह तीन तरह की है--अभिधा, लक्षणा तथा व्यंजना । इन वृत्तियों के द्वारा प्रकट होने वाले अर्थों को क्रमशः अभिधेय, लक्ष्य तथा व्यंग्य कहा जाता है। इन 'वृत्तियों' के विषय में आगे विस्तार से विचार किया जायगा । तद्धर्मावच्छिन्न.... शाब्दबुद्धित्वावच्छिन्नम् - इस अंश में कार्य अर्थात् 'शाब्दबोध' के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है । शब्द से जिस अर्थ का बोध होता है उसे 'शाब्दबुद्धि' अथवा 'शाब्दबोध' कहा जाता है। इस 'शाब्दबुद्धि' में शाब्दबुद्धित्व धर्म रहता है । इसलिए 'शाब्दबुद्धित्वावच्छिन्नम्' का अभिप्राय है शाब्दबुद्धित्व धर्म से विशिष्ट अर्थात् 'शाब्दबुद्धि' । यह 'शाब्दबुद्धि' किसी न किसी वस्तु अथवा व्यक्ति के विषय में होगी और वह वस्तु अथवा व्यक्ति अपने में समवेत उस उस धर्म से सम्बद्ध होगा। उदाहरण के लिये घट-पदार्थ-विषयक 'शाब्दबुद्धि' में घट पदार्थ ‘घटत्व' रूप धर्म से अवच्छिन्न होगा तथा पट-पदार्थ-विषयक 'शाब्दबुद्धि' में पट पदार्थ पटत्व रूप धर्म से अवच्छिन्न (विशिष्ट) होगा । इस प्रकार 'उस उस घटत्व पटत्व आदि धर्म से विशिष्ट 'शाब्दबुद्धि' यह कार्य का स्वरूप हुआ। स्पष्टता के लिये 'तत्' पद का अर्थ 'घट' कर लिया जाये तो 'तद्धर्म' का अर्थ हुअा 'घट का धर्म अर्थात् घटत्व' । 'तद्धर्मावच्छिन्न' का अर्थ हुआ 'घटत्व धर्म से विशिष्ट अर्थात् 'घट', तथा 'तद्धर्मावच्छिन्न-विषयक' का अर्थ है 'घट-विषयक'। पूरे अंश का अभिप्राय है- 'घटत्व धर्म से विशिष्ट जो घट पदार्थ उस विषयक शाब्दबुद्धि (शाब्दबोध)' । जिस पदार्थ अथवा वस्तु-विषयक शाब्द बोध होगा उस पदार्थ अथवा वस्तु में उसका अपना धर्म होगा ही। इसलिये उसी उसी घटत्व, पटत्व आदि धर्म से पदार्थ को यहां For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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