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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ मंगलाचरण ] शक्ति- निरूपणम् शिवं नत्वा हि नागेशेनानिन्द्या परमा लघुः । वैयाकरणसिद्धान्त मंजूषैषा विरच्यते 11 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नागेश के द्वारा, शिव को प्रणाम करके, निश्चित रूप से अनिन्दनीय, यह वैयाकरण - सिद्धान्त - परम-लघु-मंजूषा रची जाती है । शिवं नत्वा - मंगलाचरण के इस अंश से यह स्पष्ट है कि इस ग्रन्थ के लेखक श्री नागेश भट्ट भगवान् शिव के परम भक्त थे । इस ग्रन्थ के दो ग्रन्य, बृहत् तथा बृहत्तर रूपों - वैयाकरण - सिद्धान्त-लघु-मंजूषा तथा वैयाकरणसिद्धान्त-मंजूषा, (बृहन् मंजूषा ) - के मंगलाचरणों में भी नागेश भट्ट ने भगवान् शिव की ही स्तुति की है। द्रष्टव्य नागेशभट्टविदुषा नत्वा साम्बशिवं लघुः । वैयाकरणसिद्धान्त मंजूषैषा विरच्यते ॥ ( लम० पृ० १) नागेश भट्टविदुषा नत्वा साम्ब सदाशिवम् । वैयाकरणसिद्धान्त मंजूषेषा विरच्यते || ( हस्तलेख, पत्र सं० १ ) महाभाष्य की उद्योत टीका में नागेश ने भगवान् शिव तथा सरस्वती दोनों की आराधना की है '— नत्था साम्बशिवं देवीं वागधिष्ठानिकां गुरुम् । rrorataयाख्यां कुर्वेऽहं तु यथामति ॥ , ( महा० भा० १, उद्योत टीका पृ० १ ) इसी प्रकार परिभाषेन्दुशेखर में भी इस महावैयाकरण ने भगवान् साम्बशिव की ही स्तुति की है । द्रष्टव्य नत्वा साम्बशिवं ब्रह्म नागेशः कुरुते सुधीः । बालानां सुखबोधाय परिभाषेन्दुशेखरम् ॥ ऐसी धारणा है कि पाणिनि-सम्प्रदाय के प्रायः सभी आचार्य एवं व्याख्याता शैव थे । परम्परा के अनुसार स्वयं प्राचार्य पाणिनि भी भगवान् शिव के अनन्य उपासक थे तथा पाणिनीय व्याकरण के मूल आधार रूप १४ प्रत्याहार सूत्र, भगवान् शिव की परम अनुकम्पा के रूप में, उनके साक्षात् उपदेश द्वारा, प्राचार्य पाणिनि को सम्प्राप्त हुए थे । द्रष्टव्य - येनाक्षरसमाम्नायम् श्रधिगम्य महेश्वरात् । कृत्स्नं व्याकरणं प्रोक्तं तस्मं पाणिनये नमः ॥ ( मनमोहन घोष सम्पादित पाणिनीय शिक्षा, ऋक् शाखीया, श्लोक, ५७ पृ० ४४ ) For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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