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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अठतीस इस दृष्टि से 'धात्वर्थनिर्णय' तथा निपातार्थनिर्णय' का विशेष रूप से नाम लिया जा सकता है। 'स्फोटनिरूपण' के प्रकरण में भी संक्षेप में जितना स्पष्ट बोध 'स्फोट' के विषय में पलम के अध्ययन से होता है उतना लम० से सम्भवतः नहीं हो पाता । इसी प्रकार लम० का 'तिर्थनिरूपण' तथा 'प्रातिपदिकार्थनिरूपण' अपने विस्तार में पर्याप्त भयावह प्रतीत होता है । लम० के 'सुबर्थविचार' में विभिन्न कारकों की वे परिनिष्ठित परिभाषायें नहीं मिल पातीं जो पलम० में बड़ी सुन्दरता के साथ उपनिबद्ध हैं। इस सबका यह तात्पर्य कदापि नहीं है कि दोनों बड़ी मंजूषाओं का कोई महत्त्व ही नहीं है। व्याकरण दर्शन में पूर्ण निष्णात होने के लिये उन दोनों ही ग्रन्थों का अध्ययन अनिवार्य है । परन्तु संक्षेप में व्याकरण दर्शन के सिद्धान्तों का प्रतिपादन तथा समर्थन और नैयायिकों तथा मीमांसकों के सिद्धान्तों का नाम लेकर सयुक्तिक खण्डन जिस स्पष्टता के साथ पलम० में मिलता है उतना लम० में नहीं मिलता । इसलिये थोड़े में विषय को समझने के लिये पलम० की उपयोगिता अनुपेक्षणीय है। पलम० का प्रस्तुत अध्ययन - नागेश भटट् की परमल घुमंजूषा एक नितान्त महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है। परन्तु इस ग्रन्थ रत्न का न तो कोई सुव्यवस्थित शुद्ध संस्करण उपलब्ध है और न इसका अनुवाद तथा तथा व्याख्या ही की गयी है। जो एक दो संस्करण उपलब्ध हैं उनमें भ्रष्ट पाठों की बहुलता ही देखने को मिलती है। व्याख्या की दृष्टि से एक दो संस्करणों में टिप्पणियां दी गयी हैं पर उन में न्याय की परिभाषिक शब्दावली का प्रयोग करके विषय को और भी दुरूह कर दिया गया है। अध्येतानों को इन टीका टिप्पणियों से कोई सहायता नहीं मिलती। इस न्यूनता की पूर्ति की दिशा में यह संस्करण प्रथम प्रयास है। विविध हस्तलेखों तथा प्रकाशित संस्करणों के अधार पर ग्रन्थ का यथासम्भव शुद्ध सम्पादन, उद्धरणों की उनके मूल स्रोतों से तुलना तथा उनका संकेत, अर्थ-संगति की दृष्टि से पूरे ग्रन्थ का विविध खण्डो में विभाजन, पाठ भेदों का संकलन तथा शुद्ध पाठ का निर्धारण इत्यादि इस संस्करण की विशेषतायें हैं। ___ ग्रन्थ के प्रतिपाद्य विषय को अनुवाद में यथासंभव सरल तथा स्पष्ट किया गया है। इसके लिये कोष्ठकों का कुछ अधिक प्रयोग करना पड़ा क्योंकि बहुत से आवश्यक पद या अंश मूल पंक्ति में नहीं थे। अनुवादमात्र के अध्ययन से भी विषयवस्तु समझ में में आ जाय इस दृष्टि से कहीं कहीं अनुवाद को कुछ विस्तृत करना पड़ा है। व्याख्या भाग में प्रतिपाद्य विषय की पूरी छान बीन की गयी है तथा प्रत्येक विषय को पातंजल महाभाष्य तथा भर्तृहरि के वाक्यपदीय आदि, व्याकरण दर्शन के सभी, आधारभूत प्रमाणिक ग्रन्थों की पृष्ठिभूमि में प्रस्तुत करके आलोचनात्मक पद्धति से अधिकाधिक सरल बनया गया है । नैयायिकों तथा मीमांसकों के, पूर्वपक्ष के रूप में प्रस्तुत किये गये, उन उन सिद्धान्तों के खण्डन के प्रसंग में इन प्राचार्यों तथा उनके मूल ग्रंथों के आवश्यक उद्धरणों एवं वचनों के द्वारा उनके मन्तव्यों को भी स्पष्ट किया गया है। इस प्रकार परमल घुमंजूषा में चर्चित, उल्लिखित अथवा संकेतित सभी विषयों को, For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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