SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 492
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समासादि-वृत्त्यर्थ ४३१ परित्याग न करने के कारण ही इस तरह के प्रयोगों को 'एकार्थीभाव' सामर्थ्य के एक भेद 'अजहत्स्वार्था' वृत्ति का उदाहरण माना जाता है । 'एकार्थीभाव' सामर्थ्य के दूसरे भेद 'जहत्स्वार्था' का उदाहरण 'पङ्कज' शब्द को न मान कर ऐसे शब्दों को माना गया है जहाँ रूढ़ि' (प्रसिद्धि) अवयवों के अर्थों का विरोध करती है और उसे दूर हटा देती है । जैसे-'रथन्तर' शब्द, जिसकी चर्चा यहाँ की जा चुकी है। ___ अत एव... "इति विवेकः- 'पङ्कज' जैसे शब्द, अवयवार्थ-सहित समुदायार्थ को कहा करते हैं इसलिये, 'जहत्स्वार्था' वृत्ति के उदाहरण न होकर 'अजहत्स्वार्था' वृत्ति के उदाहरण हैं। 'रथन्तर' जैसे शब्द, जिनमें 'रूढ़ि' के द्वारा 'यौगिक' या अवयवार्थ का अपहरण कर लिया जाता है, 'जहत्स्वार्था' वृत्ति के उदाहरण हैं। इस दृष्टि से शब्द चार प्रकार के माने गये । ऊपर 'शक्ति-निरूपण' के प्रकरण में (द्र०-पृष्ठ ५०-५५) शब्द में विद्यमान चार प्रकार की 'शक्तियों' की चर्चा --- 'रूढ़ि', 'योग', 'योगरूढ़ि', यौगिकरूढ़ि इन नामों से-हो चुकी है । यहाँ 'समास' आदि 'वृत्तियों' की दृष्टि से उन्हीं चार प्रकारों की, 'रूढ़', 'यौगिक', 'योगरूढ़', 'यौगिकरूढ़' इन नामों से, परिभाषा तथा उदाहरण प्रस्तुत कर, उनका पुन: विवेचन किया जा रहा है। चौथे प्रकार (यौगिकरूढ़') की परिभाषा वहाँ नहीं दी गयी थी, यहाँ वह भी दे दी गयी है। ['व्यपेक्षा' सामर्थ्य में अनेक दोष दिखाकर 'एकार्थीभाव' सामर्थ्य का समर्थन] व्यपेक्षा-पक्षे दूषणं शक्ति-साधकम् । हरिः' अप्याह समासे खलु भिन्नैव शक्तिः पङ्कज-शब्दवत् । बहूनां वृत्ति-धर्मारणां वचनैर् एव साधने । स्यान् महद् गौरवं तस्माद् एकार्थीभाव आश्रितः ।। 'पङकज'-शब्दे योगार्थ-स्वीकारे शैवालादेरपि प्रत्ययः स्यात् । वृत्ति-धर्माः-विशेषण-लिङ्ग-संख्याद्ययोगादयः"सविशेषणानां वृत्तिन०" इत्यादि-वचनैरेव साध्याः, इति तत्-तद् वचन स्वीकार एव गौरवम् । मम तु एकार्थीभावस्वीकाराद् अवयवार्थाभावाद् विशेषणाद्ययोगो न्याय सिद्धः । वचनं च न कर्त्तव्यं न्याय-सिद्धच इति लाघवम् । भर्तृहरि के वाक्यपदीय में ये पंक्तियां अनुपलब्ध हैं । परन्तु वैभूसा० (पृ० २६३) में यह कारिका उल्लिखित एवं व्याख्यात है। इससे यह प्रतीत होता है कि यह कारिका, भर्तहरि की न होकर, भटोजि दीक्षित की है। (द्र०-वैभुसा०, समासशक्तिनिर्णय, कारिका सं०४, पृ. २६३)। For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy