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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वैयाकरण-सिद्धान्त-परम-लघु-मजूषा का अर्थ अवधि' मानना उचित ही है। पंचमी विभक्ति के अर्थ 'अवधि' का प्रदर्शन नागेश ने आदर्शभूत तीन उदाहरणों में स्वयं दिखा दिया जिनका विवेचन ऊपर हो चुका है। ['अधिकरण' कारक को परिभाषा कत -कर्म-द्वारक-फल-व्यापाराधारत्वम् अधिकरण त्वम् । यथा-'स्थाल्याम् प्रोदनं गृहे पचति' इत्यादौ कर्मद्वारक-विक्लित्तिरूप-फलाधारः स्थाली, कर्तृ-द्वारकव्यापाराधारो गृहम् इति । ननु साक्षात्-क्रियाधारयोर् अोदन-चैत्रयोर् अधिक रणत्व-लब्धौ परम्परया तद्-अाधारयोर् गृह-स्थाल्योस् तत्संज्ञा त्वयुक्ता इति चेत् ? न । परत्वात् कर्तृ-कर्मसंज्ञाभ्यां साक्षाद् अाधारीभूते बाधात् । “स्थाल्यधिकरणिका या प्रोदन-निष्ठा विक्लित्तिस तदनुकूलो गृहाधिकरणको मैत्रकर्तृको व्यापारः" इति बोधात् । 'कर्ता' तथा 'कर्म' के द्वारा (क्रमश:) 'व्यापार' तथा 'फल' का आधार बनना 'अधिकरणता' है। जैसे-'स्थाल्याम् प्रोदनं गहे पचति' (घर पर पतीली में चावल पकाता है) इत्यादि (प्रयोगों) में 'कर्ता' (चैत्र) के द्वारा (पाक) 'व्यापार' का आधार घर है तथा 'कर्म' (प्रोदन या पके चावल) के द्वारा विक्लित्ति रूप 'फल' का आधार स्थाली (पतीली) है। ___ यदि यह कहा जाय कि क्रिया ('फल' तथा 'व्यापार') के साक्षात् आधार चावल तथा चैत्र की, 'अधिकरण' संज्ञा की प्राप्ति रहने पर परम्परा से उनके आधार गृह तथा स्थाली की अधिकरण संज्ञा मानना अयुक्त है- तो वह ठीक नहीं है क्योंकि ('फल' तथा 'व्यापार' के) साक्षाद् आधार (प्रोदन तथा चैत्र) में, बाद में (विहित) होने के कारण, 'कर्ता' तथा 'कर्म' संज्ञा द्वारा ('अधिकरण' संज्ञा का) बाधन हो जायगा। तथा (उपर्युक्त प्रयोग में) "पतीली (स्थाली) है 'अधिकरण' जिसमें ऐसे प्रोदन (पके चावल) में रहने वाली जो विक्लित्ति (पकना रूप 'फल') उसके अनुकूल, घर है आधार जिसका और मैत्र है 'कर्ता' जिसका ऐसा, 'व्यापार" यह बोध होता है। पाणिनि ने "प्राधारोऽधिकरणम्" (पा० १.४.४५) सूत्र द्वारा 'अधिकरण' कारक का स्वरूप निर्धारित किया है। ऊपर से "कारके" (पा० १.४.२३) इस सूत्र का अधिकार होने के कारण यहाँ ऐसा 'आधार' अभिप्रेत है जो क्रिया का 'कारक' अथवा For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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