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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ३४६ वैयाकरण- सिद्धांत-परम- लघु-मजूषा "जब जहाँ जिस ( 'कारक') के 'व्यापार' के ग्रनन्तर ( तुरन्त पश्चात् ) क्रिया ( 'फल' रूप क्रिया) का परिपूर्ण होना (वक्ता द्वारा ) विवक्षित होता है तब ( वहाँ उसको 'करण' (कारक) कहा गया है" । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( यहाँ कारिका में ) ' क्रियाया:' इस (पद) का अभिप्राय है 'फल' रूप क्रिया क्योंकि 'रामेण बाणेन हतो वाली' (र ( राम के द्वारा, बारण से वाली मारा गया) इत्यादि (प्रयोगों) में धनुष का खींचना प्रादि 'व्यापार', वारण के (शीघ्र गति तथा हनन आदि) 'व्यापार' से पहले भी, 'कर्त्ता' राम में रहता है। तथा (इस वाक्य से) "राम से प्रभिन्न 'कर्ता' में रहने वाले 'व्यापार' से उत्पाद्य, जो Aarti में रहने वाला, 'व्यापार' उससे उत्पन्न जो प्रारण-वियोग रूप 'फल' उसका आश्रय बाली इस प्रकार का ज्ञान होता है । 'रामो बाणेन वालिनं हन्ति' इत्यादि कर्तृवाच्य में "बाग के 'व्यापार' से उत्पाद्य जो वाली में रहने वाला प्रारण-वियोग उसके अनुकूल राम रूप 'कर्त्ता' IT व्यापार " ऐसा ज्ञान होता है, अर्थात् - 'राम के 'व्यापार' से उत्पाद्य जो बाण का व्यापार" यह ज्ञान बाद में होता है । 'कर्ता' आदि पाँच 'कारकों' में 'करणत्व' के निवारणार्थ "व्यापार' की, व्यवधान-रहित रूप से( फलोत्पादकता ) ", यह (अंश परिभाषा में रखा गया ) है । स्व-निष्ठ व्यापारा" साधकतमत्वम् :- यहाँ 'करण' कारक की परिभाषा यह दी गयी है कि "जिस 'कारक' का 'व्यापार' तत्काल, बिना व्यवधान के क्रिया के 'फल' को उत्पन्न कर दे वह 'करण' कारक है ।" जैसे 'दण्डेन घटम् करोति' ( दण्ड से घड़ा बनाता है) इस प्रयोग में दण्ड 'करण' कारक है क्योंकि दण्ड में होने वाले 'व्यापार' के तुरन्त पश्चात् घटोत्पत्तिरूप 'फल' उत्पन्न होता है । इस लक्षण का जो आशय है वही पाणिनि के " साधकतमं करणम्" सूत्र में, जिसमें सूत्रकार ने 'करण' कारक की परिभाषा दी है, 'साधकतमम्' पद का भी अभिप्राय है । 'साधकतमम्' में जो 'तमप्' प्रत्यय है उसका अर्थ है प्रकर्ष । 'कारक' का, व्यवधान रहित रूप से, 'फल' के उत्पादक 'व्यापार' से युक्त होना ही उसका प्रकर्ष है । यह प्रकर्षता या साधकतमता अन्य कारकों की अपेक्षा ही द्रष्टव्य है, किसी अन्य 'करण' कारक की अपेक्षा नहीं । रामो बाणेन इति पार्ष्णिको बोधः - नागेश ने ऊपर भर्तृहरि की जिस कारिका को उद्धृत किया है उसमें 'क्रिया' पद से 'फल' अर्थ अभिप्रेत है, 'व्यापार' या 'क्रिया' नहीं - इस बात को स्पष्ट करने के लिये नागेश ने यहाँ 'रामेण बाणेन हतो बाली' यह उदाहरण प्रस्तुत किया है । इस उदाहरण में 'कररण' जो बारण है उसके शीघ्र जाना तथा बाली को मारना आदि, 'व्यापार' के रूप कार्य की निष्पत्ति होती है । 'कर्ता' जो राम उसका, धनुष खींचना आदि, 'व्यापार' तो उससे पहले ही हो चुका होता है । इसलिये यहाँ राम को 'करण' न मान कर बाण को 'करण' माना गया क्योंकि राम के 'व्यापार' तथा 'फल' की निष्पत्ति के पश्चात् 'फल' अर्थात् बालि-बध For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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