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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कारक-निरूपण 'परसमवेत' है, अर्थात् 'नदी' जा 'कर्म' कारक नहीं है, उसमें 'समवाय' सम्बन्ध से विद्यमान है । उस क्रिया से उत्पन्न तीर-प्राप्ति रूप 'फल' का प्राश्रय तीर है। इसलिए तीर की 'कर्म' संज्ञा प्राप्त होगी। अतः यह तीसरी परिभाषा भी मान्य नहीं है। [इस प्रसंग में नैयायिकों को सिद्धान्तभूत परिभाषा] अत्र ब्रूम:--'धात्वर्थतावच्छेदक-फल-शालित्वं कर्मत्वम्' । तादृशफलं च 'गमेः' संयोगः, 'त्यजेः' विभागः, 'पतेः' अधोदेश-संयोगः। अधोदेशरूप-कर्मणो धात्वर्थनिविष्टत्वाद् अकर्मकत्वेन' 'पर्ण वृक्षाद् भूमौ पतति' इति । संयोगमात्र-फल-पक्षे 'वृक्षाद् भूमौ पतति' इति । ननु चतुर्थ 'लक्षणेपि 'चैत्रश्चैत्रं गच्छति' इत्यापत्तिः । तत्र हि धात्वर्थतावच्छेदक-फलं संयोग इति चेत् न । लक्षणे व्यापारानधिकरणत्वे सति' इति विशेषण दोनाद्-इत्याहुः । इस प्रसंग में (हम नैयायिक) कहते हैं कि "धात्वर्थता के आश्रय (अर्थात् धातु के अर्थ)-'फल'-से युक्त होना' 'कर्मत्व' है। और उस प्रकार का (धात्वर्थ रूप) 'फल' 'गम्' (धातु) का 'संयोग,' 'त्यज्' (धातु) का 'विभाग', तथा 'पत्' (धातु) का निम्न स्थान से 'संयोग' है। (इस) 'निम्न स्थान' रूप 'कम' के 'पत्' धातु के अर्थ में अन्तर्भूत होने के कारण, (धातु के) 'अकर्मक' होने से, 'पर्ण' वृक्षाद् भूमौ पतति' यह प्रयोग होता है । '(पत्' धातु का) 'संयोग' मात्र 'फल' है' इस पक्ष में (पर्ण) वृक्षाद् भूमिं पतति' यह प्रयोग होगा। यदि यह कहा जाय कि इस चतुर्थ लक्षण में भी 'चैत्रश्चैत्रं गच्छति' यह (अनिष्ट) प्रयोग होने लगेगा क्योंकि वहां (चैत्र में) धात्वर्थता का प्राश्रयरूप 'फल' 'संयोग' है तो, (उपर्युक्त लक्षण में) 'व्यापारानधिकरणत्वे सति' ('व्यापार' का अधिकरण न होने पर) इस विशेषण को जोड़ देने से, वह (दोष) नहीं है। उपर्युक्त तीनों परिभाषाओं में दोष पाने के कारण, नैयायिकों की दृष्टि से ही, यहाँ चौथी एवं सिद्धान्तभूत परिभाषा प्रस्तुत की गयी- "धात्वर्थतावच्छेदकफल-शालित्वं कर्मत्वम्'। 'धातु' के अर्थ में रहने वाली 'जाति' है (धात्वर्थता') उसका अवच्छेदक १. २. ३. ह.-अकर्मकत्वेऽपि । वमि०-अकर्मकत्वे तु । ह. में 'इति' अनुपलब्ध । ह.-तृतीय। For Private and Personal Use Only
SR No.020919
Book TitleVyakaran Siddhant Param Laghu Manjusha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagesh Bhatt, Kapildev Shastri
PublisherKurukshetra Vishvavidyalay Prakashan
Publication Year1975
Total Pages518
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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